स्वर्णकाल से गुजर रही भाजपा को क्या हो रहा

Edited By ,Updated: 15 Jun, 2021 03:34 AM

what is happening to bjp going through golden age

मुख्य राजनीतिक दल कांग्रेस तथा भाजपा अपने द्वारा शासित प्रदेशों में अंदरूनी समस्याओं से दो-चार हैं। दोनों विरोधी दलों के बीच में मु य फर्क ये हैं कि जहां एक ओर कांग्रेस गिरावट की ओर है

दो मुख्य राजनीतिक दल कांग्रेस तथा भाजपा अपने द्वारा शासित प्रदेशों में अंदरूनी समस्याओं से दो-चार हैं। दोनों विरोधी दलों के बीच में मु य फर्क ये हैं कि जहां एक ओर कांग्रेस गिरावट की ओर है वहीं भाजपा कांग्रेस को बदलने की राह पर है। किसी समय अपने अनुशासन तथा संगठनात्मक एकता की मिसाल कायम करने वाली भाजपा अब वर्तमान में अंदरूनी झगड़ों को झेल रही है। ऐसा नहीं है कि अन्य राजनीतिक पाॢटयां भी अपने नेताओं को किस कदर झगड़े में उलझा पा रही हैं मगर यदि यह भाजपा के अंदर घट जाए तो निश्चित तौर पर यह एक बड़ी सुर्खी बन जाती है। 

अपने इतिहास में स्वर्णकाल से गुजर रही पार्टी को क्या हो रहा है? हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंदिरा गांधी के दिनों के बाद सबसे सशक्त नेता के रूप में उभरे हैं मगर कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने उनकी छवि को धूमिल किया है फिर भी मोदी लोकप्रिय नेता बने हुए हैं। वैक्सीन नीति, बैडों की किल्लत तथा ऑक्सीजन की कमी ने अफरा-तफरी का माहौल पैदा किया। हाल ही में आयोजित कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में मोदी का जादू काम नहीं कर पाया है। 

पहली समस्या यह है कि कुछ राज्यों में भाजपा ने कई दल-बदलुओं को शामिल किया है। इसके चलते भाजपा के भीतर उसके कार्यकत्र्ताओं के अंदर आक्रोश है कि वे तो सालों से पार्टी के लिए कार्य कर रहे हैं मगर पार्टी में कल ही दाखिल होने वाले लोग स मान पा रहे हैं। ऐसा ही कुछ यू.पी., कर्नाटक, असम और उत्तराखंड में हुआ है। उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य होने

के नाते वहां पर भाजपा की उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं। 2017 में भाजपा ने वहां एक बड़ी जीत हासिल की थी। मतभेद रखने वालों के पास कई मुद्दे हैं। गुजरात कैडर के एक सेवानिवृत्त अधिकारी ए.के. शर्मा जिन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय में अपनी सेवाएं दी हैं उन्हें इस वर्ष की शुरूआत में यू.पी. में एम.एल.सी. बनाया गया। ऐसी आशा है कि उन्हें जल्द ही एक मंत्री बना दिया जाएगा। वहीं पुराने दिग्गज नेता शर्मा को एक चुनौती के रूप में देख रहे हैं क्योंकि शर्मा के पास प्रधानमंत्री का समर्थन है। कुछ विरोधी तो मु यमंत्री तक को बदलने की मांग कर रहे हैं। वहीं ऐसी भी खबरें हैं कि मोदी और यू.पी. के मु यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रिश्तों में खटास आ गई है।

जहां तक पश्चिम बंगाल का संबंध है दल-बदलू नेता तृणमूल कांग्रेस में वापसी कर रहे हैं। मुकुल रॉय इसकी एक बड़ी मिसाल हैं। पूर्व में मुकुल रॉय राज्य की मु यमंत्री ममता बनर्जी  की आंख के तारे रहे हैं। भाजपा की स्थानीय इकाई में इसके बारे में फुसफुसाहट है कि ये सब चुनावी रणनीति के तहत हुआ। कर्नाटक में भी सरकार अंदरूनी झगड़ों के कारण उलझी हुई है। मु यमंत्री येद्दियुरप्पा के स्थानापन की भी मांग चल रही है। त्रिपुरा में विरोधी एक बार फिर सिर उठा रहे हैं। कांग्रेस में भाजपा में आने वाले कुछ विधायक राज्य के मु यमंत्री बिपलव कुमार देव को बाहर करने की मांग कर रहे हैं। 

राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राज्य के नए नेतृत्व को मानने से इंकार कर रही हैं। वे अपने ही कार्यक्रमों को जारी कर रही हैं। ये सब कुछ दर्शाता है कि भाजपा में स्थानीय स्तर पर कुछ अच्छा नहीं चल रहा। हालांकि ये सब बातें नियंत्रण से बाहर नहीं हैं। कांग्रेस भी वर्तमान में मतभेदों का सामना कर रही है। जब नेतृत्व कमजोर हो तो जाहिर है कि राज्य की इकाइयां अपनी आवाज बुलंद करेंगी। पिछले वर्ष अगस्त में 23 नेताओं जिनमें गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा तथा बी.एस. हुड्डा जैसे दिग्गज शामिल थे, ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पार्टी के पुनर्गठन की मांग को लेकर एक पत्र लिखा था। 

पंजाब तथा राजस्थान जैसे कांग्रेस शासित प्रदेशों में भी मु यमंत्रियों को हटाने की मांग की जा रही है। क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब के मु यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह पर हमले कर रहे हैं। हाईकमान ने दोनों धड़ों को पार्टी तथा सरकार में समायोजित करने का निर्णय लिया है। एक के बाद एक ‘टीम राहुल’ के खिलाड़ी धराशाही हो रहे हैं। राहुल गांधी के दो विश्वसनीय सहयोगी ज्योतिरादित्य सिंधिया और अब जितिन प्रसाद ने भाजपा का हाथ थाम लिया है। सचिन पायलट भी इस उलझन में हैं कि वह कांग्रेस को छोड़ें या फिर न छोड़ें। ऐसी ही स्थिति कांग्रेसी नेता मिलंद देवड़ा की भी है। 

भाजपा तथा कांग्रेस में ऐसी अनुशासनहीनता और गुटबाजी कभी भी न थी। एकमात्र सवाल यह है कि कितनी जल्दी विद्रोहियों को नियंत्रित कर लिया जाए। जबकि भाजपा केंद्र में सत्ताधारी पार्टी है इसलिए उसका मुश्किलों से बाहर निकलना आसान है। वहीं कांग्रेस जो विपक्ष में है उसके पास भाजपा जैसे सुख नहीं हैं। 

आज नई दिल्ली में फिर से सत्ता पाने की कांग्रेस की उ मीदें क्षीण हो चुकी हैं इसलिए विभिन्न गुट संगठन को छोडऩे की निरंतर धमकियां दे रहे हैं। अब देखना है कि कांग्रेस अपने अंदर उपजे मतभेदों और अंतर्कलह से किस तरह निपटेगी। जब पाॢटयों में लोगों का मोह भंग हो जाता है तो नए दलों का जन्म होता है। अंदरूनी समस्याएं उपजती हैं क्योंकि पार्टी कार्यकत्र्ताओं का मानना है कि उनके लिए पार्टी में कोई भविष्य नहीं है।-कल्याणी शंकर

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