हमें किस तरह के लोग चुनने होंगे

Edited By ,Updated: 14 Feb, 2024 06:20 AM

what kind of people should we choose

लोकसभा के चुनाव ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहे हैं राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैैं। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी किसी भी कीमत पर सत्ता से अलग होने के मूड में नहीं है। इसके लिए साम-दाम-दंड-भेद की रणनीति अपनाई जा रही है। सरकारी एजैंसी प्रवत्र्तन...

लोकसभा के चुनाव ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहे हैं राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैैं। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी किसी भी कीमत पर सत्ता से अलग होने के मूड में नहीं है। इसके लिए साम-दाम-दंड-भेद की रणनीति अपनाई जा रही है। सरकारी एजैंसी प्रवत्र्तन निदेशालय हो या सी.बी.आई., इन पर काम का बोझ बेतहाशा बढ़ गया है। मुझे लगता है कि इन विभागों में शायद कर्मचारियों का टोटा है, इसीलिए विपक्ष के पीछे तो इन्हें लगा दिया लेकिन अपने भ्रष्ट लोगों को पकड़ने के लिए इन विभागों में कर्मचारी कम पड़ गए हैं। इसके अलावा सत्ताधारी दल ने न्यूज चैनलों को अपना प्रचार तंत्र बना लिया है। 

जाने क्यों इनके किसी के लिए हमेशा के लिए बंद दरवाजे बहुत जल्दी खुल गए। जी हां नीतीश कुमार, जिन्होंने अपने लिए चलन में रहे पलटूराम, पेट में दांत इन सब शब्दों को अपने काम से हल्का कर दिया है। इनके लिए मैं समझता हूं कि कोई नया शब्द ईजाद करना होगा। खैर कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि सत्ताधारी पार्टी पूरी तरह से आश्वस्त होते हुए भी आक्रामक प्रचार में जुट गई है। संघ के कार्यकत्र्ता लोगों का मूड भांपने के लिए गली-मोहल्लों और चाय की दुकानों पर घूम रहे हैं। मेरी भी ऐसे कुछ कार्यकत्र्ताओं से मुलाकात हुई। वे पहले यू.पी. को अपराधमुक्त करने की मिसाल देते हैं और फिर राम मंदिर के मामले में सहानुभूति के लिए उतर आते हैं। 

खैर भारतीय जनता पार्टी अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए लोगों के बीच आज भी विपक्ष पर ही आक्रामक नजर आती है। विशेष रूप से भाजपा के नेता अपनी कमियों को ढकने के लिए कांग्रेस के सत्ता के समय का रोना रोते हैं। अब विपक्ष की तैयारी को अगर देखा जाए तो कहीं भी कुछ नजर नहीं आता। पहले राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर चुके हैं और अब न्याय यात्रा पर निकले हैं। पहली यात्रा से कांग्रेस को कुछ हासिल नहीं हुआ तो अब जब विपक्ष की अन्य पाॢटयां ‘इंडिया’ गठबंधन के तले इकट्ठी हुई हैं, उन्हें जोड़े रखने, सीट शेयरिंग आदि पर जल्द फैसला करने की बजाय कांग्रेस न्याय यात्रा पर फोकस कर रही है। 

‘इंडिया’ गठबंधन का सबसे बड़ा दल होने के नाते कांग्रेस की जिम्मेदारी थी इस गठबंधन को जोड़े रखने और जनता के सामने एक मजबूत विकल्प रखने की। इसमें कांग्रेस अभी तक सफल होती नजर नहीं आ रही है। हो सकता है कि नीतीश कुमार को भी यह बेरुखी अच्छी न लगी हो, आखिर इस गठबंधन के सूत्रधार तो वही रहे हैं। आम आदमी पार्टी दिल्ली, पंजाब में कांग्रेस को आंख दिखा रही है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस को भाव नहीं दे रहीं। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ताहीन है। 

समझ नहीं आता कि किस प्रकार कांग्रेस मोदी की भाजपा का मुकाबला करेगी। शायद उसके नेताओं को अभी भी यही लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार को जनता सत्तारोधी रुझान के चलते बेदखल कर देगी। मोदी सत्ता में रहते हुए 10 साल बाद आज भी जनता के सामने कांग्रेस की पिछली सरकारों को इस तरह याद करते हैं, जैसे वह गुलामी के शासन से भी बदतर हों और अपनी वाकपटुता से वह लोगों के दिलों में यह बात उतार देते हैं। 

शायद कांग्रेस पार्टी को भी इसी प्रकार आक्रामक राजनीति और कुशल वाकपटुता के साथ ही जनता के बीच उतरना होगा। किसी चमत्कार के भरोसे काम चलने वाला नहीं है क्योंकि अब तक कांग्रेस ने मोदी के विरुद्ध नारा दिया ‘चौकीदार चोर है’ तो मोदी ने जनता के बीच जाकर कहा ‘मैं भी चौकीदार’ हूं। कांग्रेस ने राज्यों के चुनावों में तरह-तरह की गारंटी दी। मोदी फिल्मी अंदाज में जनता के बीच बोले यह ‘मोदी की गारंटी’ है और कांग्रेस की गारंटी खत्म कर दी। 

खैर, यह तो सच है कि इस समय जनता को वाकपटुता और चतुराई से मूर्ख बनाया जा रहा है। विपक्ष को दबाने में सभी प्रकार के अच्छे-बुरे काम किए जा रहे हैं लेकिन इन परिस्थितियों में हमारा कत्र्तव्य बनता है कि एक सजग और जागरूक नागरिक की तरह हमें बहुत से मामलों पर सोच-समझ के साथ अपना मत देना होगा। वे लोग अभी से बिसात बिछा रहे हैं, तो हमें भी अपने और बच्चों के भविष्य को लेकर बिना किसी सहानुभूति के बहुत ही सोच-समझ कर उन लोगों को चुनना होगा, जो धर्म-जातियों को एकजुट रखकर सभी को संतुष्टि दें। किसानों, कामगारों, व्यापारियों के चेहरे पर तनाव न देकर खुशी दें। केवल पूंजीपतियों के हित में नहीं, अपितु 140 करोड़ लोगों के जीवन को सार्थक बनाएं। 

2047 में विकसित देश बनने की कल्पना बहुत अच्छी है लेकिन उनका क्या, जो 2024 में बेरोजगार हैं, महंगाई की मार झेल रहे हैं। क्या उन्हें अगले 23 साल, जब वे बूढ़े हो चुके होंगे, इसी तरह संकट में काटने हैं? मेरे देश के सूत्रधारो जरा आज का सोचो, आज ठीक होगा तो 2047 तक क्या 2037 तक भी हम विकसित देश बना सकते हैं अपने भारत को।-वकील अहमद
 

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