Why is there controversy over the film 'Phule'?

Edited By ,Updated: 24 Apr, 2025 05:58 AM

why is there controversy over the film  phule

इस समय ‘फुले ’ फिल्म विवादों में है। समाज सुधारक ज्योतिराव फुले और सवित्री बाई फुले की जिंदगी पर बनी यह फिल्म पहले 11 अप्रैल को फुले जयंती के अवसर पर रिलीज होने वाली थी, लेकिन ब्राह्मण समुदाय के एक वर्ग की आपत्तियों के चलते इसे स्थगित कर दिया गया...

इस समय ‘फुले ’ फिल्म विवादों में है। समाज सुधारक ज्योतिराव फुले और सवित्री बाई फुले की जिंदगी पर बनी यह फिल्म पहले 11 अप्रैल को फुले जयंती के अवसर पर रिलीज होने वाली थी, लेकिन ब्राह्मण समुदाय के एक वर्ग की आपत्तियों के चलते इसे स्थगित कर दिया गया था। इसी वजह से ‘केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ ने इसमें कुछ संशोधन करने के लिए कहा था। यानी सैंसर बोर्ड ने इस पर कैंची चला दी। अब यह फिल्म 25 अप्रैल को रिलीज होगी। 

ब्राह्मण समुदाय ने आरोप लगाया है कि इस फिल्म में ब्राह्मणों को नकारात्मक भूमिका में दिखाया गया है। फुले का समर्थन करते हुए फिल्म डायरैक्टर अनुराग कश्यप ने एक ऐसा बयान दे दिया जिससे दोबारा विवाद हो गया। अनुराग कश्यप ने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से ‘फुले’ पर हो रहे विवाद पर अपनी टिप्पणी की थी। फिर सोशल मीडिया पर एक व्यक्ति ने लिखा कि ‘ब्राह्मण तुम्हारे बाप’ हैं, जिसके जवाब में अनुराग कश्यप ने ब्राह्मणों पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी । 
इसी बयान के कारण फिल्म डायरैक्टर अनुराग कश्यप दोबारा विवादों में आ गए। उनके खिलाफ एफ.आई.आर. हो गई और उनके परिवार को जान से मारने और यौन उत्पीडऩ की धमकी भी मिली। इस विवाद के बाद अनुराग कश्यप ने माफी मांग ली। सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने लिखा,‘‘यह मेरी माफी है, उस पोस्ट के लिए नहीं बल्कि उस एक लाइन के लिए जो प्रसंग से बाहर लिया गया और नफरत पैदा हो रही है।’’ 

अनुराग कश्यप ने आगे लिखा, ‘‘कही हुई बात वापस नहीं ली जा सकती और न लूंगा लेकिन मुझे जो गाली देनी है दो, ब्राह्मण लोग औरतों को बख्श दो, इतना संस्कार तो शास्त्रों में भी है, सिर्फ  मनुवाद में नहीं है। आप कौन से ब्राह्मण हो तय कर लो। बाकी मेरी तरफ  से माफी।’’ यानी दोनों की तरफ  से अतिवादिता हो गई। ब्राह्मणों पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर क्या अनुराग कश्यप ने अपने स्तर का परिचय नहीं दे दिया। यह सही है कि उनके नाम कई उपलब्धियां हैं लेकिन उनके बयान ने यह प्रदॢशत कर दिया कि एक कलाकार के भीतर भी कई तरह की कुंठाएं हो सकती हैं। यह भी एक तरह से जातिगत भेदभाव बढ़ाना ही है। 

फिल्म ‘फुले’ जातिगत भेदभाव और लैंगिक असमानता के खिलाफ ज्योतिराव फुले और सावित्री बाई फुले के संघर्ष पर प्रकाश डालती है। ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले महाराष्ट्र के प्रमुख समाज सुधारक थे। उन्होंने हाशिए के समुदायों और महिलाओं के लिए शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने जात-पात और अंधविश्वास का विरोध किया। इस विवाद के बीच वंचित बहुजन अघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर ने पुणे में एक विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ‘फुले’ फिल्म से महत्वपूर्ण दृश्य हटा दिए गए तो उसका उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि फिल्म का उद्देश्य तभी स्पष्ट होगा जब उसके सभी दृश्य बरकरार रहेंगे। फिल्म डायरैक्टर अनुराग कश्यप ने हाल ही में फिल्म ‘फुले’ को लेकर उठे विवाद पर गहरी निराशा व्यक्त की। उन्होंने भारत में सैंसरशिप और जातिवाद पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर भारत में जातिवाद न होता तो इसके खिलाफ लडऩे की जरूरत ही क्यों पड़ती।

सवाल यह है कि किसी फिल्म को लड़ाई का माध्यम क्यों बनाया जाए? यह फिल्म ज्योतिराव फुले और सावित्री बाई फुले के संघर्ष को दिखाती है। जाहिर है जब उनका संघर्ष दिखाया जाएगा तो ब्राह्मणवादी मानसिकता और ब्राह्मणवादी व्यवस्था को भी दिखाया जाएगा। इसमें दो राय नहीं है कि पुराने जमाने में ब्राह्मणों ने दलितों पर अत्याचार किए। आज भी दलितों को मंदिर में प्रवेश न देने की घटनाएं प्रकाश में आती रहती हैं। दलितों ने जिस अपमान को भोगा है, वे ही उसे बेहतर तरीके से महसूस कर सकते हैं। दलितों के अपमान को कोई ब्राह्मण महसूस नहीं कर सकता। इसलिए यदि ‘फुले’ फिल्म में ब्राह्मणों के व्यवहार को भी दिखाया जा रहा है तो उन्हें सहज रूप से यह सब स्वीकार करना चाहिए। हर व्यवहार या प्रसंग को पूरी जाति का प्रसंग बना देना उचित नहीं है। अगर हम ऐसा करते हैं तो हम एक तरह से इस बात को नकार देते हैं कि सदियों से दलितों के साथ अत्याचार होता आया है। पुराने समय में ही नहीं,बल्कि इस प्रगतिशील दौर में भी दलितों के साथ अत्याचार की घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। अभी 4-5 दिन पहले ही आगरा जनपद में एक दलित दूल्हे से मारपीट की गई क्योंकि वह अपनी शादी में घोड़ी पर बैठ गया था। 

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि इतिहास में दलितों के साथ भेदभाव और अत्याचार हुआ है और अब भी हो रहा है। उन पर अत्याचार करने वाले लोग किसी भी जाति के हो सकते हैं। ब्राह्मणवादी व्यवस्था में बाह्मणों ने कई गलतियां कीं। इन गलतियों का किसी भी तरह से बचाव नहीं करना चाहिए और न ही इसे जातिगत लड़ाई बनाना चाहिए। अनुराग कश्यप ने भी ब्राह्मणों के ऊपर आपत्तिजनक टिप्पणी कर गंभीरता का परिचय नहीं दिया। इस दौर में ब्राह्मणों में भी प्रगतिशील विचारधारा के लोग हैं। अब हम सभी को यह सोचना होगा कि सामाजिक सद्भाव कैसे बना रहे। कोई फिल्म यदि सामाजिक यथार्थ को दिखा रही है तो उसे अपनी जाति के खिलाफ नहीं मानना चाहिए। केवल ब्राह्मण ही सम्मान के हकदार नहीं हैं दलित भाई भी सम्मान के हकदार हैं। अब हमें यह सोचना होगा कि एक-दूसरे को सम्मान देकर हम कैसे इस समाज को आगे ले जा सकते हैं।-रोहित कौशिक
 

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