क्या भाजपा मोदी की छवि के सहारे ही वैतरणी करेगी पार

Edited By ,Updated: 29 May, 2023 05:45 AM

will bjp cross vaitarani with the help of modi s image

एक मुल्ला जी मस्जिद के बाहर बैठे थे। उनसे एक शरारती लड़के ने पूछा, ‘‘मुल्ला जी आपके पड़ोस में शादी है और आप यहां बैठे हैं।’’ मुल्ला जी ने जवाब दिया, ‘‘तो मुझे क्या?’’ लड़के ने फिर छेड़ा, ‘‘सुना है वे आपके यहां मिठाई भेजने वाले हैं।’’

एक मुल्ला जी मस्जिद के बाहर बैठे थे। उनसे एक शरारती लड़के ने पूछा, ‘‘मुल्ला जी आपके पड़ोस में शादी है और आप यहां बैठे हैं।’’ मुल्ला जी ने जवाब दिया, ‘‘तो मुझे क्या?’’ लड़के ने फिर छेड़ा, ‘‘सुना है वे आपके यहां मिठाई भेजने वाले हैं।’’ मुल्ला जी पलट कर बोले, ‘‘तो तुझे क्या?’’

अब किसी देश का प्रधानमंत्री पैर छुए या बॉस कह कर संबोधित करे, स्वागत में पलक पांवड़े बिछाए या गर्मजोशी से झप्पी डाले तो इस पर भारत के मतदाताओं का जवाब होगा, ‘‘तो मुझे क्या?’’ कर्नाटक चुनाव में करारी हार के बाद भाजपा के खेमे में बहुत घबराहट है। प्रधानमंत्री मोदी की अंतर्राष्ट्रीय छवि को मार्कीट करके इस घबराहट से ध्यान हटाने की कोशिश की जा रही है।

ऑस्ट्रेलिया में होने वाली क्वाड नेताओं की बैठक अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के न आ पाने के कारण स्थगित कर दी गई थी। फिर भी मोदी जी ऑस्ट्रेलिया गए, जबकि उन्हें कोई सरकारी न्यौता नहीं था। यह उनकी निजी यात्रा थी, जिसके लिए आप्रवासी भारतीयों की एक रैली का आयोजन किया गया, जिसमें लगभग 20,000 भारतीयों ने हिस्सा लिया, जबकि ऑस्ट्रेलिया में 10 लाख भारतीय रहते हैं। जानकारों का कहना है कि इन 20,000 हजार श्रोताओं में 15,000 गुजराती थे। यह भी सुना है कि बारह चार्टर हवाई जहाज ‘चीयरलीडर्स’ को ले कर गए थे। 

दरअसल भाजपा ने कई देशों में ‘फ्रैंड्स ऑफ भाजपा’ नाम के हजारों संगठन बना रखे हैं। पिछली बार जब मोदी जी ऑस्ट्रेलिया गए थे तो ऑस्ट्रेलिया में इस संगठन के अध्यक्ष बालेश धनखड़ ने ऐसे ही कार्यक्रम आयोजित किए थे। यह इत्तेफाक ही है कि वही बालेश 5 कोरियाई महिलाओं के साथ बलात्कार के आरोप में जेल में बंद है। उधर अमरीका में मोदी जी के स्वागत के लिए अब तक जो भव्य आयोजन किए गए हैं, उनका प्रारूप भी राजनीतिक न हो कर कॉर्पोरेट इवैंट मैनेजमैंट जैसा रहा है। जाहिर है कि ऐसे आयोजनों में लोगों को लाने, होटलों में ठहराने और खिलाने-पिलाने में अरबों रुपए खर्च होते हैं। यह पैसा कौन खर्च कर रहा है? 

‘पी.एम. केयर्स’ में जमा और खर्च पैसे का हिसाब आज तक देश के मतदाताओं को नहीं दिया गया, जबकि इस निजी ट्रस्ट को सरकारी की तरह ही दिखा कर चंदे में भारी-भरकम रकम उगाही की गई थी। विपक्ष को संदेह है कि कहीं यही पैसा तो मोदी जी की छवि बनाने पर खर्च नहीं किया जा रहा? 

देश के जागरूक नागरिक इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि मोदी जी को आप्रवासी भारतीयों से ही अपने स्वागत के लिए इवैंट मैनेजमैंट करवाने की जरूरत क्यों पड़ती है, जबकि ये वे लोग हैं जो भारत के विकास की प्रक्रिया में हिस्सा न लेकर विदेश चले गए और वहां सफल होने के बाद अब भारतवासियों को ज्ञान देते हैं। ये वे आप्रवासी भारतीय नहीं हैं जो अपनी कमाई हुई विदेशी मुद्रा भारत भेजते हों। 

विदेशी मुद्रा भेजने वाली जमात तो उन गरीब आप्रवासी भारतीयों की है जो खाड़ी के देशों या अन्य देशों में मेहनत-मजदूरी करके अपनी कमाई भेजते हैं। अगर आप्रवासी भारतीय वास्तव में मोदी जी के प्रशंसक हैं और यह मानते हैं कि मोदी जी ने वाकई भारत का कायाकल्प कर दिया है तो वे लौट कर भारत में बसने क्यों नहीं आते? सच्चाई तो यह है कि इन 9 सालों में हजारों अरबपतियों ने भारत की नागरिकता छोड़ कर विदेशों की नागरिकता ले ली है। अब से पहले कभी किसी प्रधानमंत्री ने विदेशों में अपनी छवि बनाने के लिए ऐसे आयोजन नहीं करवाए। 

मोदी जी की छवि बनाने में जनता के हजारों करोड़ रुपए विज्ञापनों में खर्च कर दिए गए हैं। ये विज्ञापन केंद्र सरकार, उसके मंत्रालय, सार्वजनिक उपक्रम, प्रांतीय सरकारें, सरकार से लाभान्वित बड़े उद्योगपति और भाजपा प्रकाशित करवाते हैं। इन विज्ञापनों से देश की जनता का क्या भला हो रहा है? क्या 2 करोड़ रोजगार हर वर्ष देने का वादा किए गए 18 करोड़ लोगों को पिछले 9 वर्षों में रोजगार मिल गया? 

अगर मिल गया होता तो मुफ्त का राशन लेने वाले 60 करोड़ लोगों के घर में एक-एक सपूत तो कमाने वाला हो गया होता क्योंकि ऐसा नहीं हुआ है, इसलिए ये परिवार आज भी गरीबी की सीमा रेखा से नीचे जी रहे हैं। चीयर लीडर्स की रैलियां विदेशों में करवाने की बजाय अगर मोदी जी ने देश भर में ‘जनता दरबार’ लगाए होते और उनसे उनकी समस्याएं सुनी होतीं तो वास्तव में मोदी जी की छवि कुछ और ही बनती। तब उन्हें विज्ञापनों और विदेशी यात्राओं की जरूरत ही नहीं पड़ती। 

भारत में मोदी जी की हर यात्रा में करोड़ों रुपए के फूल सजाए जाते हैं और फूल-पत्तियों से भरी थैलियां घर-घर बंटवा कर लोगों से मोदी जी पर फूल फैंकने को कहा जाता है। सड़कें फूलों से पट जाती हैं, जैसा हाल के चुनावों में कर्नाटक में बार-बार हुआ। बावजूद इसके भाजपा बुरी तरह हार गई। मतलब यह कि वे फूल लोगों ने अपने पैसे और भावना से नहीं फैंके, बल्कि उनसे फिंकवाए गए थे। 

क्या भाजपा के पास जनता को प्रभावित करने के लिए कोई और मुद्दे नहीं बचे, सिवाय मोदी जी की छवि भुनाने के? तो क्या 2024 की वैतरणी केवल मोदी जी की छवि के सहारे पार की जाएगी? जितना ज्यादा बढ़-चढ़ कर उनका प्रचार किया जा रहा है, उसका वांछित परिणाम तो आ नहीं रहा। दिल्ली, बंगाल, हिमाचल और कर्नाटक आदि कितने ही राज्यों में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। जरूरत इस बात की है कि भाजपा और मोदी जी नकली छवि पर धन और ऊर्जा खर्च करने की बजाय अपनी ठोस उपलब्धियां मतदाताओं के सामने रखें और उनके आधार पर वोट मांगें।-विनीत नारायण

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