न्यायिक सक्रियता से क्या टकराव बढ़ेगा?

Edited By Updated: 01 Dec, 2023 06:18 AM

will conflict increase due to judicial activism

न्यायपालिका व टकराव के बीच क्या टकराव का नया दौर शुरू होने जा रहा है? देश के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एक कार्यक्रम में कहा है कि विधायिका चाहे तो नए कानून बना सकती है लेकिन वह अदालत के किसी फैसले को सीधे खारिज नहीं कर सकती। इस बयान को...

न्यायपालिका व टकराव के बीच क्या टकराव का नया दौर शुरू होने जा रहा है? देश के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एक कार्यक्रम में कहा है कि विधायिका चाहे तो नए कानून बना सकती है लेकिन वह अदालत के किसी फैसले को सीधे खारिज नहीं कर सकती। इस बयान को एक के बाद एक हो रही घटनाओं के साथ मिला कर देखें तो समझ में आता है कि आने वाला समय टकराव का हो सकता है। एक के बाद एक अनेक ऐसे मुद्दे सुप्रीम कोर्ट पहुंच रहे हैं, जिनमें संविधान का सवाल शामिल है। 

वैसे अभी तक देश की उच्च न्यायपालिका और सरकार के बीच टकराव का एकमात्र मुद्दा जजों की नियुक्ति का है। सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की ओर से भेजी गई सिफारिशों को सरकार आंख मूंद कर स्वीकार नहीं कर रही। इस पर कई जज आपत्ति कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक बैंच ने पिछले दिनों कहा कि वह हर 15 दिन पर इस मसले पर सुनवाई करेगी। चीफ  जस्टिस ने कहा कि इससे जजों की वरिष्ठता प्रभावित हो रही है।  

चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ का एक साल का अगला कार्यक्रम टकराव वाला हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों से इसकी बुनियाद रखी जा चुकी है। मिसाल के तौर पर एक फैसला महाराष्ट्र के स्पीकर को विधायकों की अयोग्यता के बारे में फैसला करने की टाइमलाइन देने का है। केंद्र और राज्य सरकार के विरोध के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर राहुल नार्वेकर को कहा कि वे शिवसेना विधायकों की अयोग्यता पर 31 दिसम्बर तक और एन.सी.पी. विधायकों की अयोग्यता पर 31 जनवरी तक अंतिम फैसला करें। अदालत ने इससे पहले कहा था कि वे अनिश्चितकाल तक मामले को लंबित नहीं रख सकते। लेकिन स्पीकर ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। उलटे उन्होंने कहा  कि फैसले में जल्दबाजी करने से अन्याय होने की संभावना बढ़ जाती हैं। उनके इस रवैये को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित कर दिया।

इस मामले में सरकार ने कहा था कि इससे पीठासीन अधिकारियों को टाइमलाइन देने की गलत परम्परा शुरू होगी और हाईकोर्ट भी इस तरह के आदेश देने लगेंगे। इसके अलावा दो और मामले थे, जिनमें लगा था कि अदालत का टकराव सरकार के साथ बढ़ सकता है, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले से इस स्थिति को टाल दिया। पहला मामला दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत का था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ई.डी. के कामकाज को लेकर बहुत सख्त टिप्पणी की थी। दूसरा मामला ‘आप’ के ही दूसरे नेता राघव चड्ढा का था। उनको राज्यसभा से निलंबित किए जाने पर अदालत ने बहुत सख्त टिप्पणी की थी। 

अन्य मामलों में से एक, चुनावी बॉन्ड मामले में सुनवाई पूरी करके अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामले में भी सुनवाई के दौरान अदालत की टिप्पणी बहुत सख्त थी। इसी तरह प्रवर्तन निदेशालय यानी ई.डी. के अधिकारों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई भी अहम होगी। विपक्षी नेता जिस रफ्तार से सुप्रीम कोर्ट की दौड़ लगा रहे हैं उससे भी टकराव की संभावना पैदा हो रही है।-अजीत द्विवेदी

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