चीनी पर दी जाने वाली सब्सिडी हो सकती है समाप्त

Edited By ,Updated: 26 Jan, 2017 02:28 PM

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वित्त मंत्री अरुण जेतली आगामी बजट में राशन की दुकानों से सस्ती चीनी बेचने के लिए राज्यों को दी जाने वाली 18.50 रुपए प्रतिकिलो की सब्सिडी समाप्त कर सकते हैं।

नई दिल्ली: वित्त मंत्री अरुण जेतली आगामी बजट में राशन की दुकानों से सस्ती चीनी बेचने के लिए राज्यों को दी जाने वाली 18.50 रुपए प्रतिकिलो की सब्सिडी समाप्त कर सकते हैं। इससे करीब 4,500 करोड़ रुपए की सब्सिडी बचेगी। सूत्रों ने इस सोच के पीछे की वजह बताते हुए कहा कि केन्द्र का कहना है कि नए खाद्य सुरक्षा कानून में गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवारों के लिए किसी तरह की कोई सीमा नहीं रखी गई है। एेसे में आशंका है कि राज्य सरकारें सस्ती चीनी का अन्यत्र भी उपयोग कर सकतीं हैं।   वर्तमान में योजना के तहत 40 करोड़ बीपीएल परिवारों का लक्ष्य रखा गया है।

मौजूदा सब्सिडी अगले वित्त वर्ष से हो सकती है बंद
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत सालाना 27 लाख टन चीनी की जरूरत होती है। मौजूदा योजना के मुताबिक राज्य सरकारें राशन की दुकानों से चीनी की सरकार नियंत्रित मूल्य पर आपूर्ति करने के लिए खुले बाजार से थोक भाव पर चीनी खरीदतीं हैं और फिर इसे 13.50 रुपए किलो के सस्ते भाव पर बेचतीं हैं। दूसरी तरफ राज्यों को इसके लिए केन्द्र सरकार से 18.50 रुपए प्रति किलो के भाव पर सब्सिडी दी जाती है। सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्रालय से एेसे संकेत हैं कि चीनी की मौजूदा सब्सिडी  योजना को अगले वित्त वर्ष से बंद किया जा सकता है।

खाद्य मंत्री ने लिखा अरुण जेतली को पत्र
इस बीच खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने वित्त मंत्री अरुण जेतली को पत्र लिखकर कहा है कि चीनी सब्सिडी योजना को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जाना चाहिए और कम से कम इसे अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) परिवारों के लिए जारी रखा जाना चाहिए। यह योजना सबसे गरीब लोगों के लिए चलाई जाती है। खाद्य मंत्रालय ने हालांकि, पहले ही राज्यों को इस बारे में संकेत दे दिए हैं कि केन्द्र सरकार अगले वित्त वर्ष से चीनी पर सब्सिडी वापस ले सकती है। राशन दुकानों  के जरिए चीनी बेचने की पूरी लागत राज्यों को स्वयं उठानी पड़ सकती है। लगातार दूसरे साल देश में चीनी का उत्पादन खपत के मुकाबले कम रह सकता है। वर्ष 2016-17 में इसके 2.25 करोड़ टन रहने का अनुमान है। यह उत्पादन चीनी की 2.50 करोड़ टन घरेलू जरूरत से कम होगा। हालांकि इस अंतर को पूरा करने के लिए पिछले साल का बकाया स्टॉक उपलब्ध है।
 

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