Edited By rajesh kumar,Updated: 03 Sep, 2020 05:05 PM
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने कहा है कि ऋण को कंपनी की इक्विटी की तरह पूंजी में बदलने के बाद दिवालिया प्रक्रिया को शुरू नहीं किया जा सकता है।
नई दिल्ली: राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने कहा है कि ऋण को कंपनी की इक्विटी की तरह पूंजी में बदलने के बाद दिवालिया प्रक्रिया को शुरू नहीं किया जा सकता है। अपीलीय न्यायाधिकरण ने यह भी कहा कि कोई भी निवेश ‘वित्तीय ऋण’ नहीं हो सकता है और किसी वित्तीय ऋणदाता द्वारा सीआईआरपी की शुरुआत के लिए दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता की धारा सात के प्रावधान सिर्फ तभी लागू हो सकते हैं, जब मामले में कोई ‘ऋण’ और ‘देनदारी से चूक’ हो। सीआईआरपी कॉरपोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया है।
एनसीएलएटी की दो सदस्यीय पीठ ने इन टिप्पणियों के साथ ही राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें 26 नवंबर, 2019 को रीता कपूर की याचिका को खारिज कर दिया गया था। इस याचिका में इन्वेस्टर्स केयर रियल एस्टेट एलएलपी के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई थी। कपूर का दावा था कि वह कंपनी में किए गए निवेश के आधार पर वित्तीय ऋणदाता थीं, और कंपनी ने कथित रूप से उन्हें वापस भुगतान करने में चूक की और ऋण को इक्विटी में बदल दिया।
इस याचिका पर सुनवाई के दौरान अपीलीय न्यायाधिकरण ने संहिता की धारा सात का हवाला देते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि एक बार ‘ऋण’ को ‘पूंजी’ में बदल दिया जाए, तो इसे ‘वित्तीय ऋण’ और अपीलकर्ता को ‘वित्तीय ऋणदाता’ नहीं कहा जा सकता है। एनसीएलएटी ने अपने आदेश में कहा कि इसलिए अपील को खारिज किया जाता है, हालांकि न्यायाधिकरण ने याचिकाकर्ता को उचित मंच पर अपील करने की इजाजत दी।