Edited By rajesh kumar,Updated: 04 Sep, 2020 02:44 PM
कोयले से चलने वाले पुराने बिजली घरों और निर्माणधीन परियोजनाओं पर रोक लगाने से 1.45 लाख करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। यह बचत ऐसे समय होगी जब बिजली मांग कोविड-19 के कारण प्रभावित हुई है।
नई दिल्ली: कोयले से चलने वाले पुराने बिजली घरों और निर्माणधीन परियोजनाओं पर रोक लगाने से 1.45 लाख करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। यह बचत ऐसे समय होगी जब बिजली मांग कोविड-19 के कारण प्रभावित हुई है।
कोविड-19 के कारण बिजली मांग में कमी
शोध संगठन ‘क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स’ की बृहस्पतिवार को जारी रिपोर्ट में यह कहा गया है। इसमें कहा गया है कि कोविड-19 के कारण बिजली मांग में कमी और राजस्व संग्रह में कठिनाइयों के कारण बिजली वितरण कंपनियों पर उत्पादक कंपनियों का बकाया बढ़कर 1,14,733 करोड़ रुपये पहुंच गया है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि पुराने कोयला संयंत्रों की जगह सस्ते नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग से वितरण कंपनियों के लिये आपूर्ति की लागत और राजस्व संग्रह के बीच अंतर कम होगा।
रिपोर्ट के मुख्य लेखक आशीष फर्नांडीस ने कहा कोविड-19 ने बिजली मांग पर प्रतिकूल असर डाला है और अर्थव्यवस्था में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आयी है। लगातार पुरानी प्रौद्योगिकी में निवेश जारी रहना वित्तीय रूप से घातक हो सकता है। राज्य सरकारों और वितरण कंपनियों को मांग में कमी का लाभ उठाना चाहिए और बचत करनी चाहिए जो कोयला चालित पुराने बिजलीघरों को हटाने और उनकी जगह सस्ते नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों को लगाने से होगी।
रोक से 1,45,000 करोड़ रुपये की बचत होगी
रिपोर्ट में कहा गया है कि पुराने कोयला संयंत्रों और निर्माण संयंत्रों पर रोक से 1,45,000 करोड़ रुपये की बचत होगी। इससे दूसरे कोयला संयंत्रों को भी वित्तीय रूप से लाभ होगा। इसमें 11 प्रमुख कोयला बिजली संयंत्रों वाले राज्यों पर गौर किया गया। वितरण कंपनियों के बकाये में इनकी 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है। रिपोर्ट में बचत और लागत को युक्तिसंगत बनाने के लिये संभावित क्षेत्रों की पहचान की गयी है। इसमें 20 साल से अधिक पुराने कोयला बिजलीघरों को बंद करना और कम दक्ष संयंत्रों की जगह नये आधुनिक संयंत्र लगाना शामिल हैं।
2022 तक पुराने संयंत्रों को बंद किया जाए- फर्नांडीस
इसमें कहा गया है कि 36,500 मेगावाट क्षमता के पुराने कोयला बिजलीघरों को बंद करने से 18,000 करोड़ रुपये के पूंजी व्यय की जरूरत खत्म होगी। ये पूंजी खर्च उत्सर्जन मानकों को पूरा करने के लिये उसमें लगाये जाने वाले उपकरणों पर होने हैं। उत्सर्जन मानकों को पूरा करने की समय सीमा दिसंबर 2022 है। फर्नांडीस ने कहा, ‘हमारा विश्लेषण बताता है कि यह ज्यादा अच्छा और लागत प्रभावी होगा कि पुराने संयंत्रों में एफजीडी (फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन)और एनओएक्स (निम्न नाइट्रोजन आक्सइड) के लिये पैसा खर्च करने के बजाए 2022 तक पुराने संयंत्रों को बंद कर दिया जाए।’