भारत-अमेरिका बॉन्ड यील्ड में अंतर 17 साल में सबसे कम

Edited By jyoti choudhary,Updated: 29 Sep, 2023 03:12 PM

difference in india us bond yields lowest in 17 years

घरेलू बॉन्ड बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को आक​र्षित करने का भारत का प्रयास नाकाम भी हो सकता है क्योंकि क्योंकि भारत और अमेरिका की बॉन्ड यील्ड में अंतर काफी कम हो गया है। भारत के 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड और अमेरिका के 10 वर्षीय बॉन्ड की यील्ड...

नई दिल्लीः घरेलू बॉन्ड बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को आक​र्षित करने का भारत का प्रयास नाकाम भी हो सकता है क्योंकि क्योंकि भारत और अमेरिका की बॉन्ड यील्ड में अंतर काफी कम हो गया है। भारत के 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड और अमेरिका के 10 वर्षीय बॉन्ड की यील्ड में अंतर पिछले 17 साल में सबसे कम रह गया है। गुरुवार को दोनों बॉन्ड के प्रतिफल में अंतर 259 आधार अंक रहा, जो जून 2006 के बाद सबसे कम है। दिसंबर 2022 में यह अंतर 354 आधार अंक और एक साल पहले 357 आधार अंक था। दोनों देशों की बॉन्ड यील्ड में मौजूदा अंतर 20 साल के औसत अंतर 467 आधार अंक से करीब 200 आधार अंक कम हो गया है।

अमेरिका में भारत की तुलना में बॉन्ड प्रतिफल तेजी से बढ़ने की वजह से दोनों की यील्ड में अंतर कम हुआ है। चालू कैलेंडर वर्ष की शुरुआत से 10 वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड का प्रतिफल 76 आधार अंक बढ़ा, जबकि इस दौरान भारत में बॉन्ड प्रतिफल 11 आधार अंक कम हुआ है। बीते दो साल में अमेरिकी बॉन्ड की यील्ड 315 आधार अंक बढ़ी है और भारत में बॉन्ड प्रतिफल इस दौरान 100 आधार अंक बढ़ा है।

फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में लगातार बढ़ोतरी किए जाने की वजह से अमेरिका में बॉन्ड यील्ड तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा उपभोक्ता मांग और कंपनियों का निवेश मजबूत बने रहने से बैंक की उधारी मांग भी बढ़ रही है। इसलिए नए बॉन्ड जारी होने से यील्ड ज्यादा बढ़ रही है। इसके उलट भारत में भारतीय रिजर्व बैंक ने दरें कम बार बढ़ाई हैं और कंपनियों का पूंजीगत व्यय भी कमजोर बना हुआ है, जिससे देश में निजी क्षेत्र ने दीर्घ अवधि की कम उधारी ली है। विश्लेषकों ने कहा कि दोनों देशों की बॉन्ड यील्ड में अंतर घटने से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए भारतीय बॉन्ड का आकर्षण कम हो रहा है।

सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इ​क्विटी में मुख्य रणनीतिकार और शोध प्रमुख धनंजय सिन्हा ने कहा, ‘अमेरिका में बॉन्ड यील्ड में तेज बढ़ोतरी और बॉन्ड यील्ड में अंतर घटने से भारत सहित उभरते बाजारों में पूंजी का प्रवाह प्रभावित हो सकता है।’ धनंजय सिन्हा ने कहा कि सितंबर में देसी शेयरों और ऋण प्रतिभूतियों में विदेशी निवेश घटा है और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी कम हुआ है।

सितंबर में अभी तक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय ऋण बाजार में 12.2 करोड़ डॉलर का निवेश किया है जो पिछले 5 महीने में सबसे कम है और अगस्त के 92.3 करोड़ डॉलर के शुद्ध निवेश से करीब 89 फीसदी कम है।

इसी तरह सितंबर में शेयर बाजार में भी विदेशी निवेशक शुद्ध बिकवाल रहे हैं जबकि इससे पहले लगातार 6 महीनों तक वह शुद्ध लिवाल बने हुए थे। भारतीय रिजर्व बेंक के आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 5.1 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ जबकि पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 11.9 अरब डॉलर का निवेश हुआ था।

विदेशी निवेश का प्रवाह घटने से वित्तीय बाजार में तरलता के भी कम होने की आशंका है जिससे बॉन्ड यील्ड बढ़ सकती है। इसका कुछ असर अभी से दिखने लगा है। 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल करीब 7 आधार अंक बढ़कर करीब 7.23 फीसदी पर पहुंच गया है। अगर यही रुझान आगे भी बना रहा तो अमेरिकी और देसी बॉन्ड की यील्ड में अंतर फिर से बढ़ने लगेगा।

विशेषज्ञों ने कहा कि भारत और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड का अंतर लंबे समय तक कम नहीं रह सकता है और थोड़े समय में यह दीर्घाव​धि के औसत स्तर पर आ जाएंगे। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘आदर्श ​स्थिति में सरकार के उधारी स्तर और अमेरिका की तुलना में भारत में पूंजी की कमी को देखते हुए भारत में ब्याज दरें और यील्ड बढ़नी चाहिए।’

उनके अनुसार भारतीय ऋण बाजार में विदेशी निवेशकों की सीमित भागीदारी के कारण भारत और अमेरिका में बॉन्ड यील्ड के बीच समानता नहीं है। अगले साल वै​श्विक बॉन्ड सूचकांक में भारतीय बॉन्ड के शामिल होने के बाद भारत में बॉन्ड यील्ड भी वैश्विक दरों के अनुरूप हो जाएंगी।
 

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