संन्यास के बाद भी शिवेन्द्र मोहन सिंह को 9 करोड़ रुपए का वेतन?

Edited By Supreet Kaur,Updated: 02 Aug, 2019 10:17 AM

even after retirement shivendra mohan singh gets salary of 9 crores

फोर्टिस घोटाले का सामना कर रहे मालविन्द्र मोहन सिंह और शिवेन्द्र मोहन सिंह की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। वीरवार को दोनों भाइयों के ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) ने छापामारी की। वहीं सुर्खियों में आए शिवेन्द्र मोहन सिंह के बारे में मीडिया...

नई दिल्लीः फोर्टिस घोटाले का सामना कर रहे मालविन्द्र मोहन सिंह और शिवेन्द्र मोहन सिंह की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। वीरवार को दोनों भाइयों के ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) ने छापामारी की। वहीं सुर्खियों में आए शिवेन्द्र मोहन सिंह के बारे में मीडिया में यह चर्चा हो रही है कि सितम्बर 2015 में कंपनी से संन्यास के बाद भी कंपनी प्रोमोटर शिवेन्द्र सिंह कंपनी के खातों से वेतन लेते रहे हैं।

शिवेन्द्र सिंह ने अदालत में हलफिया बयान देकर कहा था कि उन्होंने 40 साल की उम्र में कंपनी से रिटायरमैंट के बाद संन्यास ले लिया है और वह राधा स्वामी सत्संग घर ब्यास में सेवा कर रहे हैं। अपने हलफिया बयान में शिवेंन्द्र सिंह ने यह भी कहा कि वह फोर्टिस के कार्यकारी वाइस चेयरमैन पद से 1.1.2016 से हट चुके हैं और रिटायरमैंट के बाद फोर्टिस के किसी भी फैसले में उनकी कोई भूमिका नहीं है और कंपनी का सारा हिसाब-किताब मालविन्द्र मोहन सिंह देखते हैं। वहीं मीडिया में चर्चा है कि रिटायरमैंट के बाद भी शिवेन्द्र सिंह आर.एच.सी. की दो कंपनियों से 21 लाख रुपए से अधिक मासिक वेतन लेते रहे हैं और 1 जनवरी 2016 से सितम्बर 2017 तक उन्होंने 9.12 करोड़ रुपए वेतन लिया।
PunjabKesariफोर्टिस में 2,500 करोड़ रुपए का निवेश
अपनी शिकायत में ई-मेल सांझा करते हुए सिंह ने बताया कि दोनों भाइयों ने ढिल्लों (राधा स्वामी), उनकी संस्थाओं और परिवार को फाइनैंशियल एडवांस दिया है। उन्होंने कहा कि वह इस वित्तीय मामले को सुलझाने को लेकर कई बार ढिल्लों के पास भी गए। 12 जुलाई 2018 की एक ई-मेल अनुसार सिंह बंधुओं ने 2008 में रैनबैक्सी सेल से प्राप्त 6,500 करोड़ रुपए में से 2,500 करोड़ रुपए फोर्टिस में इनवैस्ट किए थे, जबकि बाकी राशि ढिल्लों के निर्देश पर गोडवानी को दी गई थी।

इससे पूर्व फोर्टिस हैल्थकेयर के पूर्व संस्थापक मालविन्द्र सिंह ने फरवरी महीने में दिल्ली स्थित गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एस. एफ. आई. ओ.) में शिकायत देकर आरोप लगाया था कि रैनबैक्सी लैबोरेटरीज लिमिटेड को बेचे जाने से प्राप्त राशि का कुछ हिस्सा राधा स्वामी सत्संग ब्यास के आध्यात्मिक गुरु गुरिन्द्र सिंह ढिल्लों द्वारा रीयल एस्टेट में इस्तेमाल किया गया है। मालविन्द्र सिंह ने अपनी शिकायत में कहा है कि आर.एच.सी. प्राइवेट लिमिटेड (मालविंन्द्र सिंह और शिवेन्द्र सिंह के नियंत्रण वाली कंपनी) द्वारा ढिल्लों परिवार के सदस्यों और उनके सहयोगियों व अन्य को 5,482 करोड़ रुपए का ऋण दिया गया था। इसमें से अधिकांश राशि बंगले, फार्म हाऊसिस और इमारतें खरीदने पर खर्च की गई है।
PunjabKesariउन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ढिल्लों (बाबाजी) द्वारा दिल्ली में वाल मॉल के पास 2,60,000 स्क्वेयर फीट जमीन, अहमदाबाद में 80,000 स्क्वेयर फीट जमीन और नोएडा में 5,00,000 स्क्वेयर फीट जमीन, असोला में 3 फार्म हाऊस और गुडग़ांव में 20 एकड़ जमीन खरीदने सहित बड़ी राशि कमर्शियल प्रॉपर्टीज में निवेश की गई है।

इन सवालों के नहीं मिल रहे जवाब

  • क्या सिंह बंधु इतने भोले थे कि उन्होंने न सिर्फ एक बड़ी रकम ढिल्लों परिवार को और राधास्वामी सत्संग ब्यास को ट्रांसफर कर दी, बल्कि गोधवानी जैसे परिवार से बाहर के व्यक्ति को मनमाने तरीके से काम करने की आजादी दी?
  • कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने ढिल्लों परिवार से पैसा उधार लिया था, जिसकी वजह से उन्होंने जो नकदी इस परिवार को दी वह वापस नहीं दी गई? 
  • कहीं ऐसा तो नहीं कि शिवेन्द्र सिंह खुद राधा स्वामी सत्संग ब्यास के अगले आध्यात्मिक गुरु बनना चाहते हैं और इसी वजह से उन्होंने इस संस्था को बड़ी रकम लोन के रूप में दी?

PunjabKesariसिंह बंधुओं का तीसरा भाई कहा जाने लगा था गोधवानी को 
सिंह बंधुओं की सफलता की कहानी में ट्रैजडी का सिलसिला शुरू हुआ रैनबैक्सी को बेचे जाने के बाद। रैनबैक्सी बेचने से मिली करीब 9,500 करोड़ रुपए की नकदी में से सिंह बंधुओं ने 2,000 करोड़ रुपए टैक्स और पुराने कर्ज चुकाने में लगाए। बचे 7,500 करोड़ रुपए में से 1,750 करोड़ रुपए रेलिगेयर में लगाए गए, ताकि कंपनी में और तरक्की हो। फोर्टिस घोटाले में काफी सारी कहानी गोधवानी नामक एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है और चर्चा है कि बाबाजी गुरिन्द्र सिंह ढिल्लों ने ही गोधवानी का सिंह बंधुओं से परिचय कराया और यह रिश्ता इतना करीबी हो गया कि गोधवानी को सिंह बंधुओं का ‘तीसरा भाई’ तक कहा जाने लगा। बाद में सिंह बंधुओं ने गोधवानी को अपनी नॉन-बैंकिंग कंपनी रेलिगेयर इंटरप्राइजेज का प्रमुख बना दिया। सिंह बंधु अब आरोप लगा रहे हैं कि इसमें गोधवानी ने काफी मनमानी की, लेकिन गोधवानी से जुड़े सूत्र कहते हैं कि सिंह बंधुओं को हर कदम की जानकारी थी और उन्होंने सभी जरूरी दस्तावेजों पर दस्तखत किए थे।
 

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