Edited By jyoti choudhary,Updated: 21 Sep, 2020 05:29 PM
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने पूर्व आरबीआई डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के साथ मिलकर भारतीय बैंकिंग सेक्टर के हालात पर एक रिसर्च पेपर लिखा है। दोनों अर्थशास्त्रियों ने इस रिसर्च पेपर में देश के बैंकिंग
बिजनेस डेस्कः भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने पूर्व आरबीआई डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के साथ मिलकर भारतीय बैंकिंग सेक्टर के हालात पर एक रिसर्च पेपर लिखा है। दोनों अर्थशास्त्रियों ने इस रिसर्च पेपर में देश के बैंकिंग सेक्टर की समस्याओं और समाधान पर रोशनी डालते हुए कई ऐसे रास्ते सुझाए हैं, जिससे इस सेक्टर को मजबूत किया जा सके। उन्होंने सरकारी बैंकों पर विशेष रूप से चर्चा की है। रघुराम राजन फिलहाल शिकागो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। विरल आचार्य ने पिछले साल जुलाई में ही अपने 3 साल के कार्यकाल से करीब 6 महीने पहले RBI के डिप्टी गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था। राजन ने इस रिसर्च पेपर के बारे में अपने लिंक्डइन अकाउंट के जरिए जानकारी दी है।
बैंकों में लोन के फंसने की समस्या सबसे ज्यादा
इस पेपर में दोनों अर्थशास्त्रियों ने सबसे पहले यह जानने की कोशिश की है कि बीते कुछ दशक के दौरान भारत में बैंकिंग सेक्टर क्यों चुनौतियों के दौर से गुजर रहा है। इसमें खासतौर पर सरकारी बैंकिंग सेक्टर पर ध्यान दिया गया है। दरअसल, प्राइवेट सेक्टर बैंकों की तुलना में पब्लिक सेक्टर बैंकों में लोन के फंसने की समस्या सबसे ज्यादा है। इनमें से अधिकतर हिस्सा रिकवर नहीं हो पाता है। उन्होंने इस सेक्टर में संस्थागत जटिलताओं के बारे में भी जिक्र किया है। भारत में फंसे कर्ज के रिजॉल्युशन में यह भी एक समस्या है। उन्होंने यह भी बताया है कि कई दशकों से भारत में फंसे कर्ज की समस्या को कैसे सुलझाया जा सकता है।
सरकारी बैंकों के प्रबंधन पर रोशनी डाली गई है। उन्होंने कुछ ऐसे रास्ते भी सुझाए हैं, जिससे बैंक बेहतर तरीके से लोन जारी करने के बाद उन्हें मॉनिटर भी कर सकते हैं। इससे बैंकों को जोखिम करने में भी मदद मिलेगी।
इन बातों का जिक्र
इसमें उन्होंने खराब लोन से डील करने, पब्लिक सेक्टर बैंकों को बेहतर बनाने, पब्लिक सेक्टर बैंकों के वैकल्पिक स्वामित्व के बारे में, बैंकों के जोखिम प्रबंधन को बेहतर करने के बारे में और बैंकिंग स्ट्रक्चर में बेहतर वेराइटी के बारे में विशेष तौर से फोकस किया है।
सरकारी बैंकों में नियुक्तियों का तरीक बदलने का समय
इस रिसर्च पेपर में उन्होंने यह भी कहा कि इनमें से कई बातों पर पहले भी सुझाव दिए गए हैं। साल 2014 में पी जे नायक कमेटी का भी जिक्र है। केंद्र सरकार ने 'ज्ञान संगम' के तौर पर 2015 में इस कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की कोशिश की थी। सरकारी बैंकों में नियुक्तियों और बैंकों के बोर्ड को सशक्त बनाने के लिए बैंक बोर्ड ब्यूरो बनाने की सिफारिश की गई थी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसपर सहमति जताई थी लेकिन करीब 5 साल बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं है। अभी भी बैंकों के सीईओ की नियुक्ति सरकार ही करती है।