Edited By jyoti choudhary,Updated: 10 Nov, 2025 11:40 AM

रिलायंस जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने सरकार से 6 गीगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी बैंड को पूरी तरह मोबाइल संचार सेवाओं के लिए नीलामी के जरिए आवंटित करने की मांग की है। टेलीकॉम कंपनियों ने कहा है कि इस बैंड को वाई-फाई जैसी लाइसेंस-फ्री सेवाओं के लिए...
बिजनेस डेस्कः रिलायंस जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने सरकार से 6 गीगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी बैंड को पूरी तरह मोबाइल संचार सेवाओं के लिए नीलामी के जरिए आवंटित करने की मांग की है। टेलीकॉम कंपनियों ने कहा है कि इस बैंड को वाई-फाई जैसी लाइसेंस-फ्री सेवाओं के लिए विभाजित करना भविष्य की 5G और 6G सेवाओं की गुणवत्ता पर असर डाल सकता है।
कंपनियों का कहना है कि 6 GHz मध्य-बैंड की तरह काम करता है, जो देश में व्यापक 5G और आगे 6G कवरेज के लिए जरूरी है। उनका तर्क है कि अगर भारत को 6G में वैश्विक नेतृत्व हासिल करना है, तो प्रत्येक ऑपरेटर को कम से कम 400 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की जरूरत होगी। वर्तमान प्रस्ताव के अनुसार चार ऑपरेटरों के लिए सिर्फ 175 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम ही उपलब्ध होगा, जिसे कंपनियां अपर्याप्त बता रही हैं।
टेलीकॉम ऑपरेटरों ने यह भी सुझाव दिया है कि स्पेक्ट्रम की नीलामी तभी होनी चाहिए, जब पूरा उपलब्ध बैंड (6 GHz) एक साथ नीलामी के लिए तैयार हो जाए। उनका कहना है कि शेष स्पेक्ट्रम 2030 के आसपास ही उपलब्ध होगा, जब सैटेलाइट सेवाओं द्वारा उपयोग किया जा रहा फ्रीक्वेंसी खाली होगा।
इसके अलावा कंपनियां अपने पास मौजूद स्पेक्ट्रम की वैधता अवधि को मौजूदा 20 साल से बढ़ाकर 40 साल करने की भी मांग कर रही हैं, ताकि लंबी अवधि के इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश की वापसी सुनिश्चित हो सके। जियो ने दलील दी कि भारत में जनसंख्या घनत्व अमेरिका और चीन से काफी अधिक है, इसलिए नेटवर्क पर लोड भी कई गुना ज्यादा रहता है। ऐसे में देश में मजबूत मोबाइल नेटवर्क के लिए पर्याप्त स्पेक्ट्रम जरूरी है।