बारिश ने बढ़ाई महंगाई, बढ़े आलू और चावल के दाम

Edited By jyoti choudhary,Updated: 29 Nov, 2023 05:34 PM

rain increased inflation prices of potatoes and rice increased

सर्दी के मौसम में मैदानी इलाकों में रुक-रुक हो रही हल्की-फुल्की बारिश चावल और आलू के लिए भारी तबाही का काम कर रही है। इसकी वजह से चावल और आलू की खेती में बाधा हो रही है और ये दोनों ही भारतीय किचन का अभिन्न अंग हैं, जिसकी वजह से इनकी कीमतें लगातार...

बिजनेस डेस्कः सर्दी के मौसम में मैदानी इलाकों में रुक-रुक हो रही हल्की-फुल्की बारिश चावल और आलू के लिए भारी तबाही का काम कर रही है। इसकी वजह से चावल और आलू की खेती में बाधा हो रही है और ये दोनों ही भारतीय किचन का अभिन्न अंग हैं, जिसकी वजह से इनकी कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। बीते कुछ महीनों में इनके दाम काफी बढ़ चुके हैं।

बारिश से पैदा हो रही बाधा के चलते आलू और चावल की कीमतों में 12% तक का इजाफा देखा गया है। सरकार ने चावल की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए देश से गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 जुलाई से प्रतिबंध लगाया हुआ है लेकिन बारिश की वजह से चावल के दाम दक्षिण भारत में विशेष तौर पर 15% तक बढ़ चुके हैं।

कर्नाटक में रुक-रुक हो रही बारिश ने जहां खरीफ की फसल में चावल की पैदावार को कम किया है। इसकी वजह से दक्षिण भारत में चावल की डिमांड और बढ़ गई है जबकि अक्टूबर और नवंबर में हुई बारिश की वजह से आलू की फसल बाजार में नहीं आ पाई है। इसकी वजह से पुराने आलू के स्टॉक की कीमतें बढ़ रही है। आम तौर पर दिवाली के आसपास बाजार में नया आलू दस्तक दे देता है।

उत्तर से दक्षिण जा रहा चावल

बारिश की वजह से दक्षिण भारत में चावल की सप्लाई में कमी आई है, जिसकी वजह से उन्होंने उत्तर भारत से चावल खरीदना शुरू कर दिया है। दक्षिण भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से चावल की खरीद कर रहे हैं। इसकी वजह से पूरे देश में चावल की कीमतें बढ़ रही हैं।

बासमती चावल भी हुआ महंगा

बासमती चावल भी महंगा हो रहा है। पश्चिमी एशियाई यानी खाड़ी देशों में इसकर मांग बढ़ने से देश से इसका एक्सपोर्ट बढ़ा है, जिसकी वजह से बासमती चावलों की कीमत में 10 प्रतिशत की तेजी देखी गई है। भारत में सर्दियों के मौसम में हो रही बारिश की बड़ी वजह प्रशांत महासागर में अल-निनो की स्थिति का बनना है। इसकी वजह से कीमतों में बढ़त का रुझान अगले तीन से चार महीने तक देखे जाने का अनुमान है। इसका असर अब अप्रैल 2024 में नई फसल के आने बाद ही कम होने की संभावना है।

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