अप्सरा पुत्र हनुमान वानर थे या बंदर!

Edited By Updated: 19 Apr, 2016 10:34 AM

hanuman ji

प्राचीन भारत में मनुष्यों की अनेक जातियां थीं जैसे नाग, गरूड़, ग्रघ्र, ऋक्ष एवं वानर आदि-आदि लेकिन परवर्ती ग्रन्थों में उन्हें इस ढंग से प्रस्तुत किया गया कि

प्राचीन भारत में मनुष्यों की अनेक जातियां थीं जैसे नाग, गरूड़, ग्रघ्र, ऋक्ष एवं वानर आदि-आदि लेकिन परवर्ती ग्रन्थों में उन्हें इस ढंग से प्रस्तुत किया गया कि जिससे नागों को सांप, गरूड़ों को पक्षी, ग्रघ्रों को गीध तथा वानरों को बंदर समझा जाने लगा। यही हाल राक्षस और देव जाति का भी हुआ। 
 
महर्षि वाल्मीकि रामायण (बालकाण्ड,सर्ग 17) में वानरों की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए जिन वर्ग के व्यक्तियों व महिलाओं के वर्ग का उल्लेख किया वह ‘बंदरों’ में होना सम्भंव ही नही है। उन्होंने वहां विवाह व स्त्री-पुरूष के संबंध का उल्लेख मानव समाज के समान किया है। यही नहीं महर्षि वाल्मीकि ने अयोध्या एवं लंका राजवंश के समान ही किष्किन्धा राजवंश का वर्णन किया है। वह बंदर समझ कर नहीं किया। यह उल्लेखनीय है कि मनुष्यों की तरह बंदरों का न तो सामूहिक रूप से नामकरण होता है और न ही उनकी शीक्षा-दीक्षा, वंश परम्परा एवं विवाह आदि का वर्णन होता है। बालि-सुग्रीव और केसरी आदि वानर प्रमुख इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। 
 
 
हनुमान केसरी (केसरिन्) के औरस पुत्र थे। उनकी माता अजंना जो वानरराज कुंजर की पुत्री थी, पूर्वजन्म में पुज्जिंकस्थला नामक अप्सरा थी। गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी अमरकृति ‘रामचरित मानस’ में ‘सुन्दरकाण्ड’ के प्रारम्भ में हनुमान को ‘ज्ञानिनामग्रगणयम्’ कहा है। जो किसी बंदर के लिए कदापि नहीं हो सकता। स्मरण रहे ‘वाल्मीकि रामायण’ के अनुसार राम-लक्ष्मण की विप्रवेष धारी हनुमान से जब प्रथम भेंट हुई तब भगवान श्रीराम ने अपने अनुज लक्ष्मण से ईशारों में कहा था कि यह वानर राज सुग्रीव का सचिव है। तुम इसके साथ स्नेह युक्त मधुर वाणी में बात करों। यह वेद-विज्ञ है और व्याकरण शास्त्र का पूर्ण ज्ञाता है। इतनी देर तक वार्तालाप करते हुए एक भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया। इसके मुख, नेत्र तथा ललाट पर किसी अंग पर कोई विकृति प्रतीत नहीं हो रही है। राम द्वारा हनुमान के लिए प्रस्तुत किया गया विवरण किसी बंदर के लिए असंम्भव है।
 
 
वानरों की बुद्धि, ज्ञान, चातुर्य एवं कौशल का प्रमाण उस समय भी मिलता है जब लंका में हनुमान् और इंद्रजित् का युद्ध होता है। युद्धकाण्ड सर्ग 82 के श्लोक 18 से 22 और सर्ग 83 के श्लोक 1 से 6 पठनीय एवं मानवीय है क्योंकि उनमें आधुनिक युद्ध-विज्ञान की पद्धतियों तथा यन्त्रोें का आभास मिलता है। इन्द्रजित् की सेना की प्रबलता देखकर किस प्रकार एक सुयोग्य एवं दुरदर्शी सेनापति के रुप में हनुमान् ने अपनी सेना को व्यर्थ नष्ट होने से बचा कर कुशलता से पीछे हटने का आदेश दिया और श्रीरामचन्द्र, जो इस युद्ध-क्षेत्र से सम्भवतया 75-80 मील दूर दूसरे मोर्चे पर थे, किस प्रकार ‘निर्दोष’ एवं ‘आयुधस्वन’ यन्त्र द्वारा हनुमान के मोर्चे का विवरण जान सके कि उन्होंने तुरन्त जांम्वत को ससैन्य उनकी सहायता-हेतु पहुंचने का आदेश दिया आदि बातें बड़ी रोचक एवं ज्ञान-वर्धक हैं। यहां प्रयुक्त ‘आयुधस्वन’ शब्द से कुछ लोग वर्तमान ‘वायरलेस’ या ‘रेडियो-सन्देश-प्रेषण-पद्धति का अर्थ ग्रहण करने का संकेत समझने में कोई अतिशयोक्ति अथवा अनौचित्य नहीं मानते।
 
 
हनुमान का जन्म कब हुआ। इस विषय में हम इतना ही कह सकते हैं कि त्रेतायुग में उसी काल में हुए होगें जब भगवान श्रीराम का जन्म हुआ होगा। अतिप्राचीन काल से उनकी जयंती चैत्र शुक्ल पुर्णिमा के महापर्व पर मनाई जाती है। किष्किन्धा का वानर राजवंश (जिनमें हनुमान के पिता केसरी भी शामिल थे) ऐसा ही एक मानव समाज वर्ग था, जो अन्य भारतीय समाज के समान था। अतः यह सिद्ध होता है कि हनुमान ‘वानर’ थे ‘बन्दर’ नहीं थे।
 
ज्योर्तिविद आचार्य सर्वेश्वरनाथ प्रभाकर

sarveshwar9@gmail.com 

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