आहुति के दौरान 'स्वाहा' न कहने पर नहीं होता यज्ञ पूर्ण, जानिए क्यों

Edited By ,Updated: 16 Sep, 2016 11:04 AM

inspirational story

यज्ञ के दौरान आहुति देते समय स्वाहा कहा जाता है। इसका अर्थ अौर ये क्यों कहा जाता है इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। कहा जाता है कि ऋग्वैदिक काल

यज्ञ के दौरान आहुति देते समय स्वाहा कहा जाता है। इसका अर्थ अौर ये क्यों कहा जाता है इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। कहा जाता है कि ऋग्वैदिक काल में इंसानों और देवताओं के मध्य मध्यस्थ के रूप में अग्नि को चुना गया। अग्नि के तेज से सभी कुछ पवित्र होता है। माना जाता है कि देवताअों को समर्पित वस्तुएं अग्नि में डालने से उन तक पहुंच जाती है। ये देवताअों तक तभी पहुंचती है जब आहुति देते समय स्वाहा कहा जाए।


स्वाहा का नैरुक्तिक अर्थ है-सही रीति से पहुंचाना अर्थात आवश्यक भौतिक पदार्थ को उसके प्रिय तक पहुंचाना होता है। कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जाता जब तक कि इसका ग्रहण देवता न कर लें। किंतु देवता ऐसा ग्रहण तभी कर सकते हैं जब अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए। ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में अग्नि की महत्ता पर कई सूक्तों की रचनाएं हुई हैं। इसके अतिरिक्त श्रीमद्भागवत तथा शिव पुराण में भी स्वाहा से संबंधित उल्लेख किया गया है। 

पौराणिक कथा के मुताबिक राजा दक्ष की पुत्री स्वाहा का विवाह अग्निदेव के साथ हुआ था। अग्निदेव को हविष्यवाहक भी कहा जाता है अौर वह उसे अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही ग्रहण करते हैं। उनके माध्यम से यही हविष्य आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है।

एक अन्य कथा के अनुसार स्वाहा प्रकृति की एक कला थी जिसका विवाह देवताओं के अनुरोध पर अग्नि देव से हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वाहा को वरदान दिया था कि यज्ञ के समय उसका उच्चारण करने से ही देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे। देवताअों को भोग लगाने के पश्चात ही यज्ञ को पूर्ण माना जाता है। भोग में मीठा होना जरुरी होता है तभी देवता संतुष्ट होते हैं।                        

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!