Edited By ,Updated: 16 Jan, 2016 05:15 PM
महात्मा विदुर धर्म के अवतार माने जाते हैं। माण्डव ऋषि के श्राप से उन्हें शूद्रयोनि में जन्म लेना पड़ा। यह महात्मा विचित्रवीर्य की दासी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।
महात्मा विदुर धर्म के अवतार माने जाते हैं। माण्डव ऋषि के श्राप से उन्हें शूद्रयोनि में जन्म लेना पड़ा। यह महात्मा विचित्रवीर्य की दासी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। इस प्रकार यह पाण्डु और धृतराष्ट्र के एक तरह से सगे भाई थे। विदुर बड़े ही बुद्धिमान, नीतिज्ञ, धर्मज्ञ, विद्वान, सदाचारी एवं भगवद्भक्त थे।
‘विदुर नीति’ महाभारत का एक प्रमुख भाग है जिसमें महात्मा विदुर जी ने राजा धृतराष्ट्र को लोक-परलोक में कल्याण करने वाली बातें बताई हैं। आइए हम उनके कुछ अनमोल वचनों को जानते हैं :
* जो अच्छे कर्म करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर में भरोसा रखता है और श्रद्धालु है उसके ये सद्गुण पंडित होने के लक्षण हैं।
* जो अपना आदर-सम्मान होने पर खुशी से फूल नहीं उठता और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगा जी के कुण्ड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता, वह ज्ञानी कहलाता है।
* मूढ़ चित वाला नीच व्यक्ति बिना बुलाए ही अंदर चला आता है, बिना पूछे ही बोलने लगता है तथा जो विश्वास करने योग्य नहीं हैं उन पर भी विश्वास कर लेता है।
* जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर भी इठलाता नहीं, वह पंडित कहलाता है।
* मनुष्य अकेला पाप करता है और बहुत से लोग उसका आनंद उठाते हैं। आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है।
* किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है किसी एक को भी मारे या न मारे, मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है।
* विदुर धृतराष्ट्र को समझाते हुए कहते हैं: राजन! जैसे समुद्र के पार जाने के लिए नाव ही एकमात्र साधन है उसी प्रकार स्वर्ग के लिए सत्य ही एकमात्र सीढ़ी है, कुछ और नहीं, किन्तु आप इसे नहीं समझ रहे हैं।
* केवल धर्म ही परम कल्याणकारक है, एकमात्र क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। एक विद्या ही परम संतोष देने वाली है और एकमात्र अहिंसा ही सुख देने वाली है।
* विदुर धृतराष्ट्र से कहते हैं : राजन! ये दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग के भी ऊपर स्थान पाते हैं- शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला और निर्धन होने पर भी दान देने वाला।
* काम, क्रोध और लोभ ये आत्मा का नाश करने वाले नरक के तीन दरवाजे हैं, अत: इन तीनों को त्याग देना चाहिए।
* भरतश्रेष्ठ! पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरु-मनुष्य को इन पांच की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए।