Acharya Vinoba Bhave Birth Anniversary : आचार्य विनोबा भावे ने ब्रिटिश जेल को बना दिया तीर्थधाम

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Sep, 2023 10:36 AM

acharya vinoba bhave birth anniversary

अत्यंत विद्वान एवं विचारशील व्यक्तित्व के धनी एवं पूरी जिंदगी सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए गरीब तथा बेसहारा लोगों के लिए लड़ने वाले देश के महान

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Acharya Vinoba Bhave Birth Anniversary : अत्यंत विद्वान एवं विचारशील व्यक्तित्व के धनी एवं पूरी जिंदगी सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए गरीब तथा बेसहारा लोगों के लिए लड़ने वाले देश के महान समाज-सुधारकों और स्वतंत्रता सेनानियों में आचार्य विनोबा भावे का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। वह महात्मा गांधी के अनुयायी और उनके विचारों से बेहद प्रभावित थे। अपने महान कार्यों के लिए 1958 में उन्हें प्रथम रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया जबकि भारत सरकार ने इन्हें 1983 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया।

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11 सितम्बर, 1895 को बॉम्बे प्रेसीडेंसी (अब महाराष्ट्र) में जन्मे आचार्य विनोबा भावे का मूल नाम विनायक नरहरी भावे था। इनके पिता नरहरि शंभू और मां रुक्मिणी देवी थीं। 4 भाई-बहनों में सबसे बड़े आचार्य पर मां का गहरा प्रभाव था। मां को संस्कृत की गीता समझ में नहीं आती थी तो बाजार से गीता के तीन-चार मराठी अनुवाद खरीद लाए। 

तब ‘मां ने कहा, ‘‘तू क्यों नहीं करता नया अनुवाद।’’ 

मां की इच्छा ही उनके लिए सर्वोपरि थी। प्रात:काल स्नान आदि के बाद रोज अनुवाद करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। आखिर अनुवाद पूरा हुआ और पुस्तक का नाम रखा गया - गीताई।

1915 में उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की परंतु कुछ समय बाद ही वह गृहस्थ जीवन त्याग कर सन्यास के लिए निकल पड़े। 4 फरवरी, 1916 को काशी के एक विशाल सम्मेलन में गांधी जी ने ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने आह्वान किया कि सभी व्यापक लोकहित में अपने सारे आभूषण दान कर दें। वह एक क्रांतिकारी अपील थी। समाचार पत्र में उनका भाषण पढ़ कर विनोबा जी को लगा कि जिस लक्ष्य की खोज में वे घर से निकले हैं वह पूरी हुई क्योंकि गांधी जी के पास शांति भी है और क्रांति भी। 

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अहमदाबाद स्थित कोचरब आश्रम में 7 जून, 1916 को उनसे मुलाकात के बाद तो जीवन भर के लिए वह बापू के ही हो गए। स्कूली पढ़ाई तो उन्होंने बीच में ही छोड़ दी थी लेकिन पढ़ना जारी रखा। उन्होंने गीता, रामायण, महाभारत, अर्थशास्त्र, बाइबल, कुरान आदि का साथ नहीं छोड़ा। 8 अप्रैल, 1923 को विनोबा जी को वर्धा भेजा गया। वहां उन्होंने ‘महाराष्ट्र धर्म’ मासिक का संपादन शुरू किया। इस मराठी पत्रिका में उन्होंने नियमित रूप से उपनिषदों और संतों पर लिखना आरंभ कर दिया, जिनके कारण देश में भक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई थी। 

बापू के सानिध्य और निर्देशन में विनोबा के लिए ब्रिटिश जेल एक तीर्थधाम बन गई। 1921 से लेकर 1942 तक अनेक बार जेल यात्राएं हुईं। नागपुर का झंडा सत्याग्रह, हरिजन सत्याग्रह, नमक सत्याग्रह से लेकर वह दांडी मार्च का हिस्सा रहे। आजादी के बड़े विभाजन से पूरे भारत में अशांति का माहौल था। इसी बीच आंध्र प्रदेश के भूमिहार किसानों का आंदोलन चल रहा था। वह किसानों से मिलने के लिए नलगोंडा के पोचमपल्ली गांव पहुंचे। किसानों ने उनसे कहा कि उन्हें अपनी जीविका चलाने के लिए 80 एकड़ जमीन मिल जाए तो उनका गुजारा हो सकता है। 

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आचार्य ने किसानों की मांग को जमींदारों के सामने रखा और उनसे प्रभावित होकर एक जमींदार ने अपनी 100 एकड़ जमीन दान करने का निर्णय लिया। इसने एक आंदोलन का रूप ले लिया और विनोबा भावे के नेतृत्व में यह 3 सालों तक चलता रहा। आंदोलन के दौरान उन्होंने कई जगहों पर यात्रा की और गरीब किसानों के लिए 44 लाख एकड़ जमीन हासिल करके लगभग 13 लाख गरीबों की मदद की। दीपावली के दिन 15 नवम्बर, 1982 को वर्धा में उनका निधन हुआ। शरीर त्यागने के उपरांत पवनार आश्रम की सभी बहनों ने उन्हें संयुक्त रूप से मुखाग्नि दी।

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