कुंडली न मिले तो इन उपायों से दूर होंगे दोष

Edited By ,Updated: 13 May, 2015 11:03 AM

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ज्योतिष शब्द ‘ज्योति’ अर्थात प्रकाश शब्द से बना है। अंधेरे को प्रकाश ही दूर करता है। हमारे जीवन में हमारा भविष्य अज्ञेय है, जिसके बारे हम अज्ञानी हैं, शंकालु और ज्योतिष वेद अंङ्ग है जो हमें हमारे भविष्य रूपी अंधकार को दूर करके हमें सुरक्षित मार्ग...

ज्योतिष शब्द ‘ज्योति’  अर्थात प्रकाश शब्द से बना है। अंधेरे को प्रकाश ही दूर करता है। हमारे जीवन में हमारा भविष्य अज्ञेय है, जिसके बारे हम अज्ञानी हैं, शंकालु और ज्योतिष वेद अंङ्ग है जो हमें हमारे भविष्य रूपी अंधकार को दूर करके हमें सुरक्षित मार्ग की ओर प्रशस्त करता है। 

वेदों के अनुसार चार आश्रम हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास-इन चारों आश्रमों में गृहस्थ आश्रम का पालन अति आवश्यक है और आधारशिला है, सभी आश्रमों के पालन की जिसके द्वारा मनुष्य देव, ऋषि एवं पितृ आदि के ऋण त्रय से उऋण होकर परम कल्याण को प्राप्त होता है।

इस आश्रम में प्रवेश के लिए वर-वधू का उत्तम लक्षणों से युक्त होना अनिवार्य है। वर-वधू का सुंदर, सुशील मधुर भाषी कर्तव्यपरायण, स्वस्थ, शिक्षित, सदाचारी, सुसंस्कृत होना जहां आवश्यक है  वहीं ज्योतिष गणना के अनुसार कई घटकों पर खरा उतरना भी अति आवश्यक है। विवाह संबंध निश्चित करने से पूर्व जहां लड़के-लड़की का कुल, गोत्र, विद्या, धन, शारीरिक पुष्टता आयु आदि गुणों की परीक्षा के बाद संबंध स्थापित किए जाते हैं, वहीं ज्योतिष के आधार पर कुंडली मिलान भी किया जाता है। अति विस्तार एवं सूक्ष्म अध्ययन के बाद वर-वधू के  जन्माङ्ग का अध्ययन करके एक ज्योतिषविद् निर्णय लेता है।

लड़के-लड़की की कुंडलियों में जहां मंगलीक एवं अरिष्ठ योग तथा स्त्रीदूर, पाप, कत्र्तरी एवं वर्णांदि का विचार किया जाता है वहीं लड़का-लड़की दोनों की कुंडलियों में भिन्न-भिन्न भावों में ग्रहों की उपस्थिति विशेष लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भावों का और इनमें बैठे ग्रहों का, सप्तम भाव से संबंधित ग्रहों का मिलान भी अनिवार्य है। 

मंगलीक अथवा मंगली किसी भी कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश में मंगल की उपस्थिति को कहते हैं। वर-वधू की कुंडली में मंगल ग्रह के उपरोक्त भावों में होने से जातक/जातिका मंगलीक माने जाते हैं। एक की कुंडली में मंगल इन भावों में हो और दूसरे जातक की कुंडली में न हो तो संबंध स्थापित नहीं हो सकते। वर पक्ष  या वधू पक्ष की कुंडली में मंगल नीच अथवा उनकी दृष्टि सप्तम भाव पर हो, तब भी संबंध त्याज्य होता है और भी कई योग हैं जिनके विश्लेषण के बाद कुंडली मिलान निश्चित होता है। 

कुंडली में सूर्य, मंगल, गुरु, शनि, शुक्र, राहू, केतु इत्यादि के अतिरिक्त लड़का-लड़की के जन्म नक्षत्र तथा चंद्रमा नक्षत्र पर भी विचार होता है। सबसे विशेष निर्णय वर्णादि अष्कूट का विश्लेषण करके किया जाता है। अष्टकूट वर्ण वश्य, तारा, योनि, ग्रह, मैत्री, गण, विचार-भृकुट एवं नाड़ी है। इन सभी अष्टकूटों के अलग-अलग अंक होते हैं। लड़का-लड़की के अष्कूट मिलाए जाते हैं। विशेष अष्टकूट गृह-मैत्री भृकुट, गुण पर अति गहनता से विचार करके इसके साथ नवांश चक्र को भी सूक्ष्मता से अध्ययन करके ही किसी परिणाम तक पहुंचा जा सकता है।

एक ज्योतिषविद् के लिए कुंडली मिलान जिम्मेदारी का कार्य है। उस पर दो जीवों के भविष्य का दायित्व होता है। इसमें किसी तरह, किसी भी पक्ष से प्रभावित होकर निर्णय देना घोर अपराध है।

वेदानुसार यदि कुंडलियों में ग्रह मिलान उचित न बनता हो तो संबंध स्थापित करने का परामर्श उचित नहीं। हां यदि कुंडली में मांगलिक दोष हो कालसर्प दोष हो, पाप कर्तरी योग हो तो कहीं भी संबंध स्थापित करने अथवा मिलान से पहले उनका परिहार/उपाय कर लेना चाहिए।

मंगलीक कुंडलियों के लिए अति उत्तम उपाय है हर मंगलवार सांडों को गुड़़ डालना, मसूर की दाल मंदिर में देना अथवा जल-प्रवाह करना। सबसे उत्तम हनुमान जी को हर मंगलवार केसरी सिंदूर (चमेली के तेल में मिलाकर) बेसन के लड्डू, पान का पत्ता और पानी वाला नारियल चढ़ाना चाहिए। हनुमान चालीसा, बजरंग बाण और सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए।

गुरु मकर राशि में नीच हो अथवा सप्तम भाव में मकर राशि को गुरु देखता हो तो हर वीरवार केले के पेड़  को हल्दी युक्त दूध चढ़ाएं। घी का आटे का दीपक जलाएं, हर वीरवार गाय को पीली चने की दाल, केले खिलाएं। ब्राह्मण को पीले वस्त्र, जनेऊ, बेसन के लड्डू दान दें।

कालसर्प योग की स्थिति में 18 ललेर, 18 अलग-अलग मंदिरों में रविवार को एक-एक करके किसी भी मूर्त के आगे रखें।

लड़कियां सोमवार के व्रत रखें। देवी कात्यायनी की पूजा करें शंकर-पार्वती का पूजन करें तथा सोमवार को व्रत रखें।

—ज्योतिष मर्मज्ञ भगतराम हांडा

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