अयोध्या: महाअनुष्ठान आज से, 121 आचार्य होंगे शामिल

Edited By Prachi Sharma,Updated: 16 Jan, 2024 07:00 AM

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अयोध्या के श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का महाअनुष्ठान मंगलवार से शुरू होगा। यह 21 जनवरी तक चलेगा। 22 जनवरी को अभिजीत मुहूर्त में रामलला

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अयोध्या (त्रियुग नारायण तिवारी/एजेंसी): अयोध्या के श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का महाअनुष्ठान मंगलवार से शुरू होगा। यह 21 जनवरी तक चलेगा। 22 जनवरी को अभिजीत मुहूर्त में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। नए मंदिर के गर्भगृह में रामलला की वर्तमान प्रतिमा भी रखी जाएगी। उक्त जानकारी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय ने सोमवार को श्रीराम मंदिर कार्यशाला रामघाट पर पत्रकारों से बातचीत के दौरान दी। उन्होंने बताया कि 22 जनवरी को श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य रामलला के मंदिर में विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम मध्याह्न अभिजीत मुहूर्त में होगा। 

आगामी पौष शुक्ल कूर्म द्वादशी विक्रम संवत 2080 तदनुसार 22 जनवरी को भगवान श्री रामलला के श्री विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का पवित्र योग आ गया है। समस्त शास्त्रीय विधि का पालन करते हुए प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम मध्य अभिजीत मुहूर्त में होगा। भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा की विधि 16 जनवरी से प्रारम्भ होकर 21 जनवरी तक चलेगी। सामान्यतया प्राण-प्रतिष्ठा में सप्त अधिवास होते हैं लेकिन यहां कुल द्वादश अधिवास होंगे। उन्होंने बताया कि अनुष्ठान में 121 आचार्य शामिल होंगे। अनुष्ठान के संयोजक गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ एवं प्रमुख आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित (काशी) होंगे। प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आर.एस.एस. के सरसंघचालक मोहन भागवत, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गरिमामयी उपस्थिति में होगा।
चंपत राय ने सोमवार को कहा कि मैसूर के अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई राम लला की एक नई मूर्ति को अयोध्या में राम मंदिर में स्थापना के लिए चुना गया है। 18 जनवरी को इसे श्री रामजन्मभूमि तीर्थ पर गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि राम लला की मौजूदा प्रतिमा जो 1950 से वहां है, उसे भी नए मंदिर के गर्भगृह में रखा जाएगा।

पहली बार एक साथ जुटेंगे इतने संत और संप्रदाय: चंपत राय ने बताया कि देश के सभी आध्यात्मिक धार्मिक मत, पंथ, संप्रदाय, उपासना पद्धतियों के सभी अखाड़ों के आचार्य, सभी पंरपराओं के आचार्य, सभी सम्प्रदायों के आचार्य, 150 से अधिक परंपराओं के संत, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, श्री महंत, महंत, नागा साधुओं के साथ ही 50 से अधिक आदिवासी, गिरिवासी तटवासी, द्वीपवासी जनजाती परंपराओं की उपस्थिति भारत वर्ष के निकटवर्ती इतिहास में पहली बार हो रही है। यह अपने आप में विशिष्ट होगा। उन्होंने बताया कि सम्मिलित होने वाली परंपराओं में शैव, वैष्णव, शाक्त, गणपत्य, पत्य, सिख, बौद्ध, जैन, दशनाम शंक रामानंद्र, रामानुज, निम्बार्क, मद्धव, विष्णु नामी, रामसनेही, घीसा पंथ, गरीबदासी, गौड़ीया, कबीरपंथी, वाल्मीकि, असम से शंकरदेव, माधव देव, इस्कॉन, रामकृष्ण मिशन, चिन्मय मिशन, भारत सेवाश्रम - गायत्री परिवार, अनुकूलचंद, ठाकुर परंपरा, उड़ीसा का महिमा समाज, पंजाब से अकाली, निरंकारी, नाम राधास्वामी तथा स्वामीनारायण, वारकरी, वीर शैव आदि शामिल हैं।
 

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