Edited By Lata,Updated: 09 Jul, 2019 03:57 PM
आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भडल्या नवमी के रूप में मनाया जाता है और ये इस बार कल यानि 10 जुलाई को मनाई जाएगी।
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आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भडल्या नवमी के रूप में मनाया जाता है और ये इस बार कल यानि 10 जुलाई को मनाई जाएगी। इसके साथ ही इस दिन रवि योग रहेगा और गुप्त नवरात्रि का समापन भी होगा। कहते हैं कि इस तिथि को भी अक्षय तृतीया की तरह ही शुभ और मंगल माना जाता है। क्योंकि इस दिन बिना किसी मुहूर्त के कोई भी शुभ काम किया जा सकता है। मान्यता है कि इस दिन जिस किसी का विवाह होता है, उसका वैवाहिक जीवन सुखमय व्यतीत होता है और उसे जीवन में तमाम में खुशियां हासिल होती हैं। तो चलिए आगे जानते हैं इसके महत्व के बारे में।
भडल्या नवमी का महत्व
यह तिथि इसलिए महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि देवशयनी एकादशी के बाद सभी मांगलिक काम 4 महीनों के लिए बंद हो जाएंगे और उससे पहले कल यानि 10 जुलाई भडल्या नवमी के शुभ दिन पर आप बिना कोई मूहुर्त देखे ही सारे काम कर सकते हैं। इस दिन भगवान लक्ष्मी-नारायण की पूजा की जाती है और किसी-किसी जगह इस दिन व्रत भी रखा जाता है।
पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार इस दिन लक्ष्मी-नारायण की पूजा और कथा की जाती है। भड़ली नवमी पर साधक को स्नान करके धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए। अर्चना के दौरान भगवान को फूल, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। पूजा में बिल्व पत्र, हल्दी, कुमकुम या केसर से रंगे हुए चावल, पिस्ता, बादाम, काजू, लौंग, इलाइची, गुलाब या मोगरे का फूल, किशमिश, सिक्का आदि का प्रयोग करना चाहिए। अर्चना के बाद पूजा में प्रयोग हुई सामग्री को किसी ब्राह्मण या मंदिर में दान कर देना चाहिए।
जैसे कि हम पहले बता चुके हैं कि भड़ली नवमी के दिन रवि योग भी रहेगा, जोकि अपने आप में स्वयं सिद्ध योग माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन इंद्राणी ने व्रत पूजन के माध्यम से देवराज इंद्र को प्राप्त किया था। भड़ली नवमी पर विवाह, आभूषणों की खरीदारी, वाहन, भवन और भूमि आदि भी खरीदना शुभ माना गया है। भड़ली नवमी के दो दिन बाद देवशयनी एकादशी से चातुर्मास लग जाता है। जिसका अर्थ है कि आने वाले 4 महीनों तक विवाह या अन्य शुभ-मांगलिक कार्य नहीं किए जा सकते हैं।