Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Feb, 2024 11:17 AM
हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी कहते हैं। सनातन धर्म में भीष्म अष्टमी का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में इस दिन को एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार
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Bhishma Ashtami 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी कहते हैं। सनातन धर्म में भीष्म अष्टमी का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में इस दिन को एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्यागा था। पितामह भीष्म को अपनी इच्छा से प्राण त्यागने का वरदान प्राप्त था इसलिए कई बाणों से घायल होने के बावजूद भी उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया। भीष्म अष्टमी का दिन भीष्म तर्पण के रूप में भी मनाया जाता है। जो लोग इस दिन व्रत रखते हैं, उन्हें गुणवान और बुद्धिमान संतान की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं कि भीष्म अष्टमी का शुभ मुहूर्त और महत्व।
Bhishma Ashtami Shubh Muhurat भीष्म अष्टमी शुभ मुहूर्त
पंचांग के मुताबिक अष्टमी तिथि की शुरुआत 16 फरवरी सुबह 08 बजकर 54 मिनट पर होगी और 17 फरवरी को सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर इसका समापन होगा। उदया तिथि के मुताबिक 16 फरवरी शुक्रवार के दिन भीष्म अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा।
मध्याह्न समय - सुबह 11 बजकर 28 मिनट से 01 बजकर 43 मिनट तक
Importance of Bhishma Ashtami भीष्म अष्टमी का महत्व
भीष्म अष्टमी का पर्व भीष्म पितामह की तर्पण की तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन भीष्म पितामह ने ब्रह्मचर्य जीवन व्यतीत करने की कसम ली थी। उन्हें अपनी इच्छा अनुसार प्राण त्यागने का वरदान प्राप्त था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग भीष्म अष्टमी तिथि का व्रत करते है, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस दिन निसंतान महिलाएं व्रत रखती हैं। व्रत रखने से गुणवान और बुद्धिमान संतान की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।