Kundli Tv- ये चाणक्य नीति बदल सकती है आपके बच्चों का भविष्य

Edited By Jyoti,Updated: 23 Jun, 2018 03:57 PM

chanakya niti about childran in hindi

आजकल के समय में अपनी बिज़ी लाईफ के चलते कुछ मां-बाप बच्चों की परवरिश की तरफ़ ध्यान नहीं दे पाते। उनकी इस छोटी सी लापरवाही के कारण उनके बच्चे अपने जीवन में एेसी गलतियां कर बैठते हैं, जिसके कारण उन्हें जीवनभर पछताना पड़ता है।

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आजकल के समय में अपनी बिज़ी लाईफ के चलते कुछ मां-बाप बच्चों की परवरिश की तरफ़ ध्यान नहीं दे पाते। उनकी इस छोटी सी लापरवाही के कारण उनके बच्चे अपने जीवन में एेसी गलतियां कर बैठते हैं, जिसके कारण उन्हें जीवनभर पछताना पड़ता है। प्रत्येक माता-पिता का यह कर्तव्य होता है कि वे अपने बच्चों को सही शिक्षा दी जाए ताकि उनका जीवन सुखमय हो सके। इस संदर्भ में आचार्य चाणक्य ने बहुत अच्छी बातें बताई हैं, जिन्हें अपनाने से बच्चों का जीवन सुधर सकता है।
 
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आचार्य चाणक्य कहते है कि-
पांच वर्ष लौं लालिये, दस लौं ताडऩ देइ।
सुतहीं सोलह वर्ष में, मित्र सरसि गनि लेइ।।

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सभी माता-पिता को चाहिए कि वे पांच वर्ष की आयु तक अपने बच्चों के साथ प्रेम और दुलार करें। इसके जब पुत्र दस वर्ष का हो जाए तो और यदि वह गलत आदतों का शिकार हो रहा है तो उसे दण्ड भी दिया जा सकता है। जिससे उसका भविष्य सुरक्षित रह सके। जब बच्चा सोलह वर्ष का हो जाए तो उसके साथ मित्रों के जैसा व्यवहार करना चाहिए।

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आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जब तक बच्चा पांच वर्ष का हो जाए तब तक माता-पिता को उससे बहुत प्रेम और दुलार के साथ पेश आना चाहिए। अक्सर ज्यादा लाड़-प्यार में बच्चे गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं और प्रेम से वे नहीं समझ रहे हैं तो उन्हें सजा देकर सुधारा जा सकता है। डरा-धमकाकर बच्चों को सही राह पर लाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त जब बच्चा सोलह वर्ष का हो जाए उसके बाद उनके साथ मित्रों की तरह व्यवहार रखना चाहिए। इस उम्र के बाद बच्चों के साथ किसी भी तरह की ताडऩा या  पिटाई नहीं की जानी चाहिए। अन्यथा बच्चा घर छोड़कर भी जा सकता है। जब बच्चा घर-संसार को समझने लगे तो उससे मित्रों की तरह व्यवहार रखना श्रेष्ठ रहता है।
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