Dadi Prakashmani death anniversary: दादी प्रकाशमणि ने दिलाई थी Brahma Kumaris को विश्वव्यापी पहचान

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Aug, 2023 10:32 AM

dadi prakashmani death anniversary

1969 से 2007 तक ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय’ की मुख्य प्रशासिका रहीं दादी प्रकाशमणि ने आध्यात्मिक नेता के रूप में विश्वव्यापी पहचान

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Death anniversary of Rajyogini Dadi Prakashmani: 1969 से 2007 तक ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय’ की मुख्य प्रशासिका रहीं दादी प्रकाशमणि ने आध्यात्मिक नेता के रूप में विश्वव्यापी पहचान बनाकर सब को जीने का सही तरीका सिखाया। ‘शांतिदूत’ पुरस्कार से सम्मानित दादी ऐसी विदुषी नारी थीं, जिन्होंने यह सिद्ध किया कि शांति स्वरूपा नारी महान सामाजिक क्रांति की नायिका बन सकती है। दादी ने अपने नेतृत्व में लाखों भाई-बहनों के जीवन में अद्भुत परिवर्तन लाकर उन्हें विश्व सेवा के लिए प्रेरित किया तथा यू.एन.ओ. द्वारा संस्था को मान्यता प्रदान की गई।

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दादी ने अपने अनुपम मूल्यनिष्ठ जीवन, अध्यात्मिक शक्ति व प्रशासनिक दक्षता से ब्रह्माकुमारीज संगठन को प्रेम,  शांति, सत्य, समरसता, सद्भावना, आत्मिक दृष्टि, वात्सल्य व करुणा जैसे मूल्यों से सुसज्जित करके दुनिया भर में अध्यात्म की ज्योति जलाई। उनके प्रयास से दुनिया के 140 देशों में 8 हजार राजयोग केंद्र स्थापित हैं।

दादी का लौकिक नाम रमा था तथा उनका जन्म हैदराबाद, सिंध (पाकिस्तान) में 1 सितम्बर, 1922 को हुआ। उनके पिता श्री विष्णु के बड़े उपासक और भक्त थे। रमा का भी श्री कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति भाव रहता था। वह 15 वर्ष की आयु में पहली बार 1936 में स्थापित ‘ओम मंडली’ के संपर्क में आई, जिसके कुछ समय बाद उन्हें दादा लेखराज (जिन्हें अब ब्रह्मा बाबा के नाम से जाना जाता है) ने प्रकाशमणि नाम दिया।

1939 में पूरा ईश्वरीय परिवार (ओम मंडली) कराची (पाकिस्तान) में जाकर बस गया। 12 वर्ष के बाद मार्च 1950 में ‘ओम मंडली’ माउंट आबू में आई तथा 1952 से मधुबन, माउंट आबू से पहली बार ईश्वरीय सेवा शुरू की गई। दादी प्रकाशमणि भी सेवा में जाती थीं। दादी जी अधिकतर मुम्बई में ही रहती थीं।

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प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के 18 जनवरी 1969 को अव्यक्त होने के बाद से दीदी मनमोहिनी के साथ-साथ दादी प्रकाशमणि मधुबन से ही यज्ञ की संभाल करने लगीं। अव्यक्त होने से पहले ही ब्रह्मा बाबा ने दादी को यज्ञ की समस्त जिम्मेदारी दे दी थी। दादी के समर्थ नेतृत्व में संस्था आगे बढ़ती गई और कई देशों में राजयोग सेवा-केंद्र खुले। दादी प्रकाशमणि के प्रताप से ही सिंध हैदराबाद में रोपित पौधा आज वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। जुलाई 2007 में दादी जी का स्वास्थ्य नीचे आने लगा और 25 अगस्त, 2007 को उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया। दादी की याद में मधुबन में ‘प्रकाश स्तंभ’ बनाया गया है, जिस पर उनकी शिक्षाएं लिखी गई हैं।  

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