Edited By Jyoti,Updated: 07 May, 2022 02:49 PM
प्रत्येक वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी का पर्व पड़ता है, जिस दिन विधि वत रूप से गंगा मां का पूजन करने का विधान होता है। ऐसी धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं कि इस दिन पावन व
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प्रत्येक वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी का पर्व पड़ता है, जिस दिन विधि वत रूप से गंगा मां का पूजन करने का विधान होता है। ऐसी धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं कि इस दिन पावन व शुद्ध गंगा नदियों में स्नान करने से व इनकी आराधना करने से मानव जीवन के पापों का क्षय होता है तथा पितृ दोषों से भी राहत मिलती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें इस बार 08 मई, 2022 दिन रविवार को गंगा सप्तमी का पर्व पड़ रहा है। माना जा रहा है कि इस साल गंगा सप्तमी पर तिथि, वार और ग्रह-नक्षत्र ये तीनों मिलकर बेहब शुभ योग व संयोग का निर्माण कर रहे हैं। जिस कारण गंगा सप्तमी का ये पर्व अधिक माना जा रहा है। ज्योतिष शास्त्रियों का मानना है कि इस शुभ संयोग में व्हीकल खरीददारी से लेकर कपड़ों की, सोना-चांदी की तथा प्रापर्टी तक खरीदना शुभ रहेगा। तो वहीं इस दिन नए घर में प्रवेश करना और नई कार्य आदि की शुरुआत करना भी लाभदायक साबित होता है। इसके अलावा इस शुभ योग में गंगा घाट पर पूर्वजों की श्राद्ध करने से पितरों व पूर्वजों से संबंधित दोष समाप्त होते हैं। साथ ही साथ अकाल मृत्यु वाले पूर्वजों को मोक्ष मिलता है।
यहां जानें गंगा सप्तमी पर बन रहा है कौन सा शुभ संयोग-
रवि पुष्य, श्रीवत्स और सर्वार्थसिद्धि योग इस साल गंगा सप्तमी पर रवि पुष्य, श्रीवत्स और सर्वार्थ सिद्धि योग बनेंगे। वहीं, सप्तमी तिथि शनिवार दोपहर करीब 3 बजे शुरू हो जाएगी। जो अगले दिन शाम 5 बजे तक रहेगी। रविवार को सूर्योदय के वक्त सप्तमी तिथि होने से 8 मई को तीन महायोगों के संगम के साथ मनाई जाएगी। इसके अलावा इस दिन श्रीवत्स योग के साथ मुहूर्त राज माना जाने वाला रवि पुष्य योग भी बन रहा है। रवि पुष्य योग सुबह स्थानीय सूर्योदय के साथ प्रारंभ हो जाएगा एवं दोपहर 2.56 बजे तक रहेगा। बताया जा रहा है इसी दौरान सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा।
इसके अलावा यहां जानिए गंगा सप्तमी से जुड़ी प्रचलतित मान्यताएं मान्यता
शास्त्रों में किए वर्णन के अनुसार श्री हरि के अवतार वामन भगवान ने राजा बली से 3 पग भूमि नापते समय उनका तीसरा पग ब्रह्मलोक में पहुंच गया, वहां पर ब्रह्मा जी ने वामन भगवान का पद प्राक्षलन करके कमंडल में ले लिया, राजा सगर के 60 हजार मृत पुत्रों का उद्धार करने के लिए राजा भागीरथ के तप से प्रासन्न होकर गंगा जी शिव की जटाओं में आईं। शास्त्रों में इसी शुभ दिन को गंगा सप्तमी के नाम से जाना जाता है।
इसके अतिरिक्त ये भी मत है कि प्राचीन समय में एक समय जब महर्षि जह्नु जब तपस्या कर रहे थे। तब गंगा नदी के पानी की आवाज से बार-बार उनका ध्यान भटक रहा था। जिस कारण उन्होंने गुस्से में आकर अपने तप के बल से गंगा को पी लिया था। हालांकि इसके उन्होंने बाद में अपने दाएं कान से गंगा को पृथ्वी पर छोड़ दिया था। जिस कारण गंगा सप्तमी को मां गंगा के प्राकट्य का दिन माना जाता है। बता दें धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इसी घटना के बाद से ही मां गंगा का जाह्नवी नाम जग प्रख्यात हुआ था।