Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Sep, 2023 08:13 AM
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति को कठिनाइयों, बाधाओं और परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है। विद्यार्थियों के जीवन में परीक्षाओं की संख्या सामान्य से
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Vastu tips to increase concentration in studies: जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति को कठिनाइयों, बाधाओं और परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है। विद्यार्थियों के जीवन में परीक्षाओं की संख्या सामान्य से अधिक रहती है। कई बार छात्र बहुत अधिक मेहनत करते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें अपनी योग्यता के अनुरूप परिणाम नहीं मिल पाता। इसका कारण उसके वास्तु दोष में छिपा होना है। यह वास्तु दोष घर और व्यावसायिक स्थान कहीं भी हो सकता है। बहुत प्रयास करने पर भी यदि शिक्षा का सही अध्ययन नहीं हो रहा हो तो एक बार वास्तु शास्त्रियों से अपने घर और व्यावसायिक स्थल का निरीक्षण करवा लेना चाहिए।
अध्ययन कक्ष का निर्माण वास्तु सम्मत किया जाता है तो विद्यार्थियों के अध्ययन में मन लगता है, एकाग्रचित्त हैं और परिणाम भी अनुकूल आते हैं। शिक्षा में किसी भी प्रकार की कमी से बच्चों के भविष्य में बाधा आती है। इस प्रकार की स्थिति से बचने के लिए माता-पिता को बच्चों के अध्ययन कक्ष की साज-सज्जा, संरचना के समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए। इससे बच्चों को सफलता उत्तम और सहज प्राप्त होगी। थोड़ी मेहनत से अच्छे अंक प्राप्त करने में वास्तु शास्त्र से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
वास्तु शास्त्र में कहा गया है कि पूर्व-उत्तर, जिसे ईशान कोण के नाम से भी जाना जाता है, यह दिशा अध्ययन कार्य के लिए विशेष रूप से शुभ है। वास्तु दोष युक्त स्थान में पढ़ाई करने वाले छात्रों का मन पढ़ाई में कम लगता है और एकाग्रता बार-बार भंग होती रहती है।
परीक्षा में टॉप करने की इच्छा रखने वाले छात्रों के लिए आवश्यक है कि जिस विद्यार्थी ने जिस स्थान पर अध्ययन किया है, वह स्थान वास्तु शास्त्र को ध्यान में रख कर तैयार किया जाए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि अध्ययन कक्ष ईशान कोण में न हो तो पूर्व दिशा के स्थान पर भी अध्ययन करना श्रेयस्कर रहता है। यदि यह संभव नहीं तो अध्ययन करते समय बच्चे का मुंह उत्तर-पूर्व दिशा या ईशान दिशा की ओर होना चाहिए।
इसी तरह अगर घर का निर्माण पहले किया गया हो और अब सुधार की गुंजाइश न हो, और पढ़ाई का कमरा पश्चिम दिशा में हो तो, पढ़ाई के समय बच्चे का मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिशा से आने वाली सकारात्मक ऊर्जा अध्ययन पक्ष से बहुत शुभ है। ईशान कोण और पूर्व दिशा दोनों पर अध्ययन कार्य किया जा सकता है। इन दोनों दिशाओं से आने वाली शुभ ऊर्जा जीवन को ऊर्जा युक्त और एकाग्रता को बेहतर बनाती है।
अध्ययन कक्ष बनाने के लिए ईशान कोण, पूर्व दिशा और उत्तर दिशा के अतिरिक्त पश्चिम दिशा का भी उपयोग किया जा सकता है। यहां सबसे उत्तम विकल्प ईशान कोण, पूर्व दिशा, उत्तर दिशा और अंत में पश्चिम दिशा का भाव करना चाहिए। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि नैऋत्य व आग्नेय की दिशा में अध्ययन कार्य भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
अध्ययन करते समय बालक की पीठ कभी भी दरवाजे की ओर नहीं होनी चाहिए। बच्चों की अध्ययन व्यवस्था कभी भी किसी भी बीम के नीचे नहीं होनी चाहिए। इससे ध्यान भंग होता है। विद्यार्थियों के शयन के लिए भी यही दिशाएं शुभ और अनुकूल हैं। संभव हो तो बच्चों के अध्ययन कक्ष में ही छात्र का शयन कक्ष बनाया जा सकता है।
अध्ययन कक्ष में खिड़की का होना शुभ माना जाता है, जो पूर्व या पश्चिम अथवा उत्तर की दिशा में सही बताई गई है। खिड़की का दक्षिण दिशा में होना विपरीत फलदायक माना गया है।
शयन कक्ष में दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना उत्तम माना गया है। पश्चिम दिशा में सिरहाना करके सोने से अध्ययन कार्य में छात्रों की रुचि बनी रहती है।
ईशान कोण में ईश्वर के चित्र, अध्ययन पत्रिका और पीने की व्यवस्था रखी जा सकती है।
फर्नीचर की दुकान दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित हो सकती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार कभी भी नैऋत्य एवं वायव्य दिशा में पुस्तकालय नहीं होना चाहिए। माना जाता है कि नैऋत्य एवं वायव्य दिशा में पुस्तकें होने से विद्यार्थियों की पढ़ाई में रुचि कम रहती है और पुस्तकें पढ़ने में भी भय रहता है।
पढ़ाई करने के बाद किताबें खुली छोड़ कर न सोएं। इससे नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है और छात्रों के स्वास्थ्य के लिए भी यह उत्तम नहीं रहता।