महाभारत का ये पात्र रोज़ाना करता है यहां शिवलिंग का अभिषेक

Edited By Jyoti,Updated: 11 Aug, 2019 01:49 PM

gupteshwar mahadev in madhya pradesh

12 अगस्त यानि कल इस साल के श्रावण माह का आख़िरी सोमवार है। 15 अगस्त को 2019 के सावन का अंतिम दिन है। इसलिए ज्योतिष के शास्त्र अनुसार अब शिव भक्तों के पास भगवान शंकर को खुश करने के लिए केवल 4 दिन बाकी है।

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12 अगस्त यानि कल इस साल के श्रावण माह का आख़िरी सोमवार है। 15 अगस्त को 2019 के सावन का अंतिम दिन है। इसलिए ज्योतिष के शास्त्र अनुसार अब शिव भक्तों के पास भगवान शंकर को खुश करने के लिए केवल 4 दिन बाकी है। इस दौरान बहुत से लोग एकांत में बैठकर शिव जी की पूजा करेंगे तो कुछ शिवालय में जाकर इन्हें खुश करने के कोशिश करेंगे। मगर इनमें से कुछ ऐसे भी लोग होंगे जो न तो इनकी अच्छे से पूजा कर पाएंगे न ही उनकी भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों में जाकर शिवलिंग के दर्शन करने की इच्छा पूरी हो पाएगी।
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तो जैसे कि आप जानते हैं कि हमने सावन के पूरे माह आपको अपनी वेबसाइट्स के जरिए प्राचीन शिव मंदिरों के दर्शन करवाते रहे हैं। तो हम अपनी इस कड़ी को आज कैसे तोड़ सकते हैं। आज हम आपको बताने वाले हैं शिव जी के ऐसे प्राचीन मंदिर के बारे में जहां प्राचीन काल से भगवान शिव का एक भक्त उनकी पूजा कर आ रहा है। हम जानते हैं ये जानने के बाद आपकी इस मंदिर को लेकर उत्सुकता और अधिक बढ़ गई है। घबराइए मत हम आपको इससे जुड़ी सभी जानकारी बताने वाले हैं।

जिस जगह के बारे में हम बात कर रहे हैं यह मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के ग्वारीघाट नर्मदा नदी के किनारे है। कहा जाता है यहां महाभारत के पात्र अश्वत्थामा भटकतें हैं। इसके अलावा कुछ लोगों का मानना है कि अश्वत्थामा असीरगढ़ किले में भी भटकते हैं। बता दें द्वापरयुग में जन्मे अश्वत्थामा की गिनती उस समय के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी।
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श्रीकृष्ण से मिला था ये श्राप-
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की मृत्यु की सत्यता जाननी चाही तो युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा अर्थात- अश्वत्थामा मारा गया है, लेकिन मुझे पता नहीं कि वह नर था या हाथी। यह सुन गुरु द्रोण पुत्र मोह में शस्त्र त्याग कर युद्धभूमि में बैठ गए और उसी अवसर का लाभ उठाकर पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया। पिता की मृत्यु से अश्वत्थामा विचलित हो गए और उनकी मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध करने के लिए आतुर हो गए।

इसी के चलते उन्होंने पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरूप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया और युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दे दिया था।
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गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में करते हैं पूजा-अर्चना
कहा जाता है असीरगढ़ किले में स्थित तालाब में स्नान करके अश्वत्थामा शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं। इतना ही नहीं कुछ लोगों का कहना है कि वो सावन में यहां आकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह है कि पहाड़ की चोटी पर बने किले में स्थित यह तालाब बुरहानपुर की तपती गर्मी में भी कभी सूखता नहीं है। इसी तालाब के थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर स्थापित है, जिसके चारों ओर खाई ही खाई है। यहां की लोक मान्यताओं के अनुसार इन्हीं में से किसी एक खाई में से एक गुप्त रास्ता है, जो खांडव वन (मध्यप्रदेश के खंडवा जिला) से होता हुआ सीधे इस मंदिर में निकलता है।
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