Guru Gobind Singh Jayanti: गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व पर पढ़ें उनके बलिदान की कहानी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Jan, 2024 06:59 AM

guru gobind singh jayanti

गुरु गोबिंद सिंह जी (पहला नाम गोबिंद राय जी) का प्रकाश 1666 ई. में पटना साहिब में श्री गुरु तेग बहादुर जी के घर माता गुजरी जी की कोख से हुआ। उस समय औरंगजेब का अत्याचार सब हदें पार कर चुका था। गुरु तेग बहादुर जी उस समय सिखी के प्रचार के लिए

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Guru Gobind Singh Jayanti 2024: गुरु गोबिंद सिंह जी (पहला नाम गोबिंद राय जी) का प्रकाश 1666 ई. में पटना साहिब में श्री गुरु तेग बहादुर जी के घर माता गुजरी जी की कोख से हुआ। उस समय औरंगजेब का अत्याचार सब हदें पार कर चुका था। गुरु तेग बहादुर जी उस समय सिखी के प्रचार के लिए देश का भ्रमण कर रहे थे। उन्होंने अपने परिवार को पटना साहिब में ठहराया तथा स्वयं आगे असम की ओर चले गए। गोबिंद राय जी की उम्र केवल कुछ वर्ष की ही थी जब गुरु तेग बहादुर जी ने श्री आनंदपुर साहिब वापस आकर परिवार को वहीं बुला लिया। गुरु तेग बहादुर जी के धर्म प्रचार दौरे लोगों को दिलासा देने का काम कर रहे थे। औरंगजेब ने उस समय देश भर के अपने सभी गवर्नरों को आदेश जारी कर दिया था कि हिन्दुओं के सभी मंदिर तथा गुरुकुल गिरा दिए जाएं।

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 इन आदेशों को सख्ती से लागू किया जाने लगा। कश्मीर के गवर्नर इफ्तखार खान ने औरंगजेब के इन आदेशों को लागू करने की ठान ली। कश्मीर में मंदिर गिरने लगे तथा हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाया जाने लगा। इस जुल्म के विरुद्ध गुरु जी से सहायता की फरियाद करने कश्मीरी पंडितों का 16 सदस्यीय शिष्टमंडल पंडित कृपा राम की अध्यक्षता में श्री आनंदपुर साहिब पहुंचा।

कश्मीरी पंडितों की व्यथा सुन कर गुरु जी गंभीर हो गए। तब 9 वर्ष के गोबिंद राय जी (जो बाद में गुरु गोबिंद सिंह कहलाए) ने उनकी चिंता का कारण पूछा तो गुरु तेग बहादुर जी ने कहा कि इन पर जुल्म हो रहा है तथा किसी महाबली की शहादत से ही उस पर अंकुश लग सकता है।  

तब इन्होंने तुरंत कहा कि पिता जी आपसे बड़ा महाबली और कौन हो सकता है। इस तरह हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने बाल उम्र में ही अपने पिता जी को दिल्ली की तरफ रवाना किया। औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर जी को शहीद कर दिया गया। गुरु जी की शहीदी के उपरांत गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने सभी सिखों को शस्त्र धारण तथा बढिय़ा घोड़े रखने के लिए उसी तरह आदेश जारी किया जिस तरह श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहीदी के बाद श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने किया था।

गुरु जी श्री आनंदपुर साहिब से कुछ समय के लिए हिमाचल प्रदेश में नाहन के राजा मेदनी प्रकाश के बुलाने पर चले गए तथा वहां पाऊंटा साहिब नामक नगर बसाया। यहीं गुरु जी ने बाणी की रचना की तथा भंगानी का युद्ध भी पाऊंटा साहिब के निकट ही लड़ना पड़ा जो गुरु जी का पहला युद्ध था। इस युद्ध में अप्रशिक्षित लोग बादशाह तथा बाईधार के राजाओं की सेनाओं से लड़े तथा जीत हासिल की। इसके बाद गुरु जी दोबारा श्री आनंदपुर साहिब आ गए। यहां भी पहाड़ी राजाओं ने लड़ाई-झगड़ा जारी रखा पर जीत हमेशा गुरु जी की होती रही। 1699 ई. को वैसाखी वाले दिन गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना की तथा पांच प्यारों से स्वयं अमृत संचार करके अपना नाम (गुरु) गोबिंद सिंह रखा।

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1704 ई. को जब गुरु जी ने श्री आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया तो मुगल सेनाओं ने पीछे से हमला कर दिया, जिस कारण गुरु जी का सारा परिवार बिछड़ गया। चमकौर साहिब की एक कच्ची गढ़ी में गुरु जी ने अपने 40 सिंहों सहित 10 लाख मुगल सेना का सामना किया। यहां गुरु जी के 2 बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह तथा बाबा जुझार सिंह शहीद हुए। गुरु जी के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह तथा बाबा फतेह सिंह जी को सरहिंद के सूबे वजीर खान के आदेश से जिंदा ही दीवारों में चिनवा कर शहीद कर दिया गया।

गुरु जी ने साबो की तलवंडी में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का पुन: संपादन किया तथा अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी की बाणी को अलग-अलग रागों में दर्ज किया। पीर बुद्धू शाह जैसे मुसलमान फकीर उनके पक्के मुरीद थे। पीर जी ने गुरु जी की भंगानी के युद्ध में भी मदद की थी। गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन से हमें एक बात बहुत प्रमुखता से पता चलती है कि इनकी लड़ाई जुल्म से थी, किसी व्यक्ति से नहीं। उनकी बाणी में भी सच के लिए लड़ना तथा मजलूमों की रक्षा करने की शिक्षा मिलती है।

सितम्बर 1707 ई. में गुरु जी महाराष्ट्र के नांदेड़ चले गए जहां इन्होंने माधो दास बैरागी को अमृत संचार कर बाबा बंदा सिंह बहादुर बनाया तथा जुल्म का सामना करने के लिए पंजाब की ओर भेजा। 2 विश्वासघाती पठानों ने गुरु जी पर छुरे से वार कर दिया। गुरु जी ने अपनी तलवार से एक को तो मौके पर ही मार दिया जबकि दूसरा सिखों के हाथों मारा गया। इनके शरीर पर आए घाव काफी गहरे थे तथा ये 7 अक्तूबर, 1708 ई. को ज्योति ज्योत समा गए और श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को गुरु गद्दी दे दी।

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