रुद्राक्ष: पढ़ें, धार्मिक एवं औषधीय वृक्ष की कथा

Edited By Updated: 10 Jun, 2024 05:22 PM

health benefits of rudraksh

रुद्राक्ष दो शब्दों रुद्र व अक्ष यानी भगवान शंकर की आंख से गिरी जल बिंदू से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई है। शिव पुराण के अनुसार संसार की कल्याण कामना के लिए भगवान शिव ने हजारों वर्ष तपस्या की।

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Health benefits of rudraksh: रुद्राक्ष दो शब्दों रुद्र व अक्ष यानी भगवान शंकर की आंख से गिरी जल बिंदू से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई है। शिव पुराण के अनुसार संसार की कल्याण कामना के लिए भगवान शिव ने हजारों वर्ष तपस्या की। उस समय उन्हें भय सा लगा और उन्होंने अनायास ही नेत्र खोले। तभी एक बूंद अश्रु की गिरी तथा इसी बीज रूपी अश्रु से रुद्राक्ष का पेड़ लगा। लोक कल्याण की भावना से भगवान शंकर के अंश से उत्पन्न यह परम श्रेष्ठ फल शंकर को बहुत प्रिय है। अत: रुद्राक्ष की माला भगवान शंकर की पूजा में अनिवार्य मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने से मुक्ति, कल्याण एवं सर्वांगीण सुख-शांति मिलती है।

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रुद्राक्ष उत्तर-पूर्वी भारत एवं पश्चिमी घाट में मिलने वाला मध्यम आकार का वृक्ष है जो नेपाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, असम, मध्य प्रदेश तथा मुम्बई में पाया जाता है। शेष भारत में यह कहीं-कहीं पाया जाता है तथा भारत के कई भागों में इसे छाया एवं शोभाकारी वृक्ष के रूप में उगाया जाता है।

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इसकी पत्तियां आयताकार-भालाकार होती हैं। इसके श्वेत पुष्प मई-जून में खिलते हैं तथा फल नवम्बर से दिसम्बर तक पकते हैं। इसका फल हल्का नीलापन लिए बैंगनी रंग का अष्ठी फल होता है जिसमें गूदा व एक गुठली होती है जो कड़ी, गोल या अंडाकार होती है। यह प्राय: पंचकोष्ठीय होती है परंतु कभी-कभी प्रकृति में एक से 7 कोष्ठीय गुठलियां भी मिलती हैं जिसके अनुसार रुद्राक्ष एकमुखी, द्विमुखी, त्रिमुखी आदि कहलाते हैं। पांच से अधिक या कम कक्षों वाले रुद्राक्ष महंगे बिकते हैं।
 
नेपाल के जंगलों में पांचमुखी रुद्राक्ष (छोटे आंवले के आकार के) बहुतायत में पाए जाते हैं। इसे विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है, इसको बंगला में रुद्राख्या, उड़िया में ल्द्राख्यों, हिन्दी में रुद्राकी, असमी में रुद्रई, तोहलंगसेवई, लटोक, उद्रोक के नामों से तथा मराठी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम व संस्कृत भाषा में रुद्राक्ष के नाम से जाना या पुकारा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘इलियोकार्यस स्फेरीकस’ है।

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उपयोग: रुद्राक्ष को मुक्ति व युक्ति देने वाला बताया गया है। इसे हृदय रोग एवं उच्च तथा निम्र रक्तचाप में उपयोगी माना गया है। ऐसा विश्वास है कि रुद्राक्ष की मालाओं को धारण करने से उच्च रक्तचाप कम हो जाता है तथा हृदय रोगों में लाभ होता है। इसका गुदा खट्टा होता है व मिर्गी के दौरों में अच्छा समझा जाता है।

शास्त्रों में इसकी माला धारण करने से व्यक्तित्व के विकास व मानसिक शांति प्राप्त होने का वर्णन किया गया है। पांच मुखी, छहमुखी, सातमुखी या नौमुखी रुद्राक्ष की माला को कंठ में धारण करना चाहिए ताकि वह हृदय को स्पर्श करती रहे। इससे मन को शांति मिलती है।

इसके अलावा विशुद्ध रुद्धाक्ष (किसी भी वर्ग का) के 10 दाने ताम्रपात्र में 50 ग्राम जल में रात भर डुबो कर रखें तथा प्रात: खाली पेट उस पानी का सेवन करने से अनेक रोगों के उपचार में लाभ मिलता है। नेपाल में इसे सर्वश्रेष्ठ फल माना गया है।

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