Chhath Puja 2020: पौराणिक कथा से जानें कैसे हुआ ‘छठ पर्व’ का आरंभ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Nov, 2020 08:13 AM

history and importance of chhath puja

‘छठ पर्व’ या ‘छठ व्रत’ सूर्य की उपासना का प्रतीक है। जिसमें व्रतधारी, व्रत के साथ ही विशेष स्वच्छता का ध्यान रखता है। आज नहाय खाय के साथ इस छठ पर्व की शुरूआत हो चुकी है। मालूम हो कि हर साल

नई दिल्ली (नवोदय टाइम्स): ‘छठ पर्व’ या ‘छठ व्रत’ सूर्य की उपासना का प्रतीक है। जिसमें व्रतधारी, व्रत के साथ ही विशेष स्वच्छता का ध्यान रखता है। आज नहाय खाय के साथ इस छठ पर्व की शुरूआत हो चुकी है। मालूम हो कि हर साल छठ व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होती है। जिसे राजधानी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में बसे पूर्वांचल के लोग काफी धूमधाम व विधि-विधान के साथ मनाते हैं। हालांकि इस बार कोरोना ने छठ व्रत पर भी ग्रहण लगा दिया है। सामूहिक रूप से मनाए जाने वाले इस त्योहार को लेकर अभी तक सरकार की ओर से हरी झंडी नहीं दिखाई गई है जिससे पूर्वांचल के लोगों में थोड़ा रोष व्याप्त है।

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बता दें कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले इस त्योहार की शुरुआत दो दिन पहले चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से हो जाती है। यह छठ पूजा का पहला दिन होता है, जिस दिन व्रतधारी सुबह नहाकर लौकी, चने की दाल और चावल देशी घी से बनाकर खाते हैं। इसके अगले दिन यानि 19 नवम्बर को खरना, 20 नवम्बर को डूबते सूर्य को अर्घ्य व 21 को उगते सूर्य को अर्घ्य  दिया जाएगा।

बता दें कि छठ मईया को मौसमी फल गन्ना, नींबू, शरीफा, सेब, केला, संतरा, अमरूद चढ़ाए जाने के साथ ही नारियल, हल्दी, सुथनी, शकरकंदी, पान, सुपारी, कपूर, चंदन, मिठाई, ठेकुआ, पुआ, चावल के बने गुड़ वाले लड्डू भी चढ़ाए जाते हैं। सूर्य को अर्घ्य बांस या पीतल के बने सूप या टोकरी से दिया जाता है। व्रतधारी कमर तक नदी या पोखरे में उतरकर अर्घ्य देते हुए उपासना करते हैं और विश्व के कल्याण की प्रार्थना करते हैं।

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जानें क्या है छठ का पौराणिक महत्व
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, राजा प्रियव्रत नि:संतान थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा, महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ करवाया और उनकी पत्नी महारानी मालिनी को यज्ञ के पश्चात पुत्र को जन्म दिया। दुर्भाग्य से वह शिशु मरा हुआ पैदा हुआ, जिससे राजा और प्रजा बहुत दु:खी थे।

तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं, राजा ने उनसे प्रार्थना की अपने पुत्र को बचाने की। तब ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी ने कहा कि में विश्व के बच्चों की रक्षा और नि:संतान दंपतियों को संतान प्राप्ति का वरदान देती

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