Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 May, 2024 08:35 AM
भगवान शिव के मस्तक में चंद्रमा विराजित होने के कारण वे भालचन्द्र के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। चन्द्रमा का स्वभाव शीतल होता है तथा इसकी किरणे शीतलता प्रदान करती हैं। ऐसा अक्सर देखा गया है की जब
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भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा का विराजमान होना :- भगवान शिव के मस्तक में चंद्रमा विराजित होने के कारण वे भालचन्द्र के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। चन्द्रमा का स्वभाव शीतल होता है तथा इसकी किरणे शीतलता प्रदान करती हैं। ऐसा अक्सर देखा गया है की जब मनुष्य का दिमाग शांत होता है तो वह बुरी परिस्थितियों का और बेहतर ढंग से सामना करता है तथा उस पर काबू पा लेता है। वही क्रोधी स्वभाव वाले मनुष्य की परेशानियां और अधिक बढ़ जाती हैं। ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा को मन का प्रतीक माना गया है तथा मन की प्रवृति बहुत चंचल होती है। मनुष्य को सदैव अपने मन को वश में रखना चाहिए नहीं तो यह मनुष्य के पतन का कारण बनता है।इसी कारण से महादेव शिव ने चन्द्रमा रूपी मन को काबू कर अपने मस्तक में धारण किया है।
अस्त्र के रूप में त्रिशूल :- भगवान शिव सदैव अपने हाथ में एक त्रिशूल पकड़े रहते हैं। जो बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र है तथा इसके शक्ति के आगे कोई अन्य शक्ति केवल कुछ क्षण मात्र भी ठहर नहीं सकती। त्रिशूल संसार की तीन प्रवृत्तियों का प्रतीक है। जिसमे सत का मतलब सात्विक, रज का मतलब संसारिक और तम का मतलब तामसिक होता है। हर मनुष्य में ये तीनों ही प्रवृत्तियां पाई जाती हैं तथा इन तीनों को वश में करने वाला व्यक्ति ही आध्यात्मिक जगत में आगे बढ़ पाता है। त्रिशूल के माध्यम से भगवान शिव यह संदेश देते हैं की मनुष्य का इन तीनों पर ही पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए।
गले में नाग को धारण करना :- भगवान शिव जितने रहस्मयी हैं उतने ही रहस्मय उनके वस्त्र और आभूषण भी हैं। जहां सभी देवी-देवता आभूषणों से सुसज्जित होते हैं, वही भगवान शिव एकमात्र ऐसे देव हैं, जो आभूषणों के स्थान पर अपने गले में बहुत ही खतरनाक प्राणी माने जाने वाले नाग को धारण किये हुए हैं। भगवान शिव के गले में लिपटा हुआ नाग जकड़ी हुई कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है। भारतीय अध्यात्म में नागों को दिव्य शक्ति के रूप में मान कर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है परन्तु वही कुछ लोग बिना वजह इन से डर कर इनकी हत्या कर देते हैं। भगवान शिव अपने गले में नाग को धारण कर यह सन्देश देते हैं की पृथ्वी के इस जीवन चक्र में प्रत्येक छोटे-बड़े प्राणी का अपना एक विशेष योगदान है। अतः बिना वजह किसी प्राणी की हत्या नहीं करनी चाहिए।
भगवान शिव का वाद्य यंत्र डमरू :- भगवान शिव का वाद्य यंत्र डमरू ”नाद” का प्रतीक माना जाता है तथा पुराणों के अनुसार भगवान शिव को संगीत का जनक माना गया है। नाद का अर्थ होता है ऐसी ध्वनि जो ब्रह्मांड में निरंतर जारी रहे। जिसे ओम कहा जाता है। भगवान शिव दो तरह का नृत्य करते हैं, तांडव नृत्य करते समय भगवान शिव के पास डमरू नहीं होता तथा जब वे डमरू बजाते हुए नृत्य करते हैं तो हर ओर आनंद उत्पन्न होता है।
जटाएं : शिव अंतरिक्ष के देवता हैं। उनका नाम व्योमकेश है। अत: आकाश उनकी जटा स्वरूप है। जटाएं वायुमंडल की प्रतीक हैं।वायु आकाश में व्याप्त रहती है। सूर्य मंडल से ऊपर परमेष्ठी मंडल है। इसके अर्थ तत्व को गंगा की संज्ञा दी गई है। अत: गंगा शिव की जटा में प्रवाहित है। शिव रुद्रस्वरूप उग्र और संहारक रूप धारक भी माने गए हैं।
भगवान शिव और भभूत या भस्म :- भगवान शिव अपने शरीर में भस्म धारण करते हैं। जो जगत के निस्सारता का बोध कराती है। भस्म संसार के आकर्षण, माया, बंधन, मोह आदि से मुक्ति का प्रतीक भी है। यज्ञ के भस्म में अनेक आयुर्वेदिक गुण होते हैं। भस्म के प्रतीक के रूप में भगवान शिव यह संदेश देते हैं की पापों के कामों को छोड़ मनुष्य को सत मार्ग में ध्यान लगाना चाहिए तथा संसार के इस तनिक भर के आकर्षण से दूर रहना चाहिए क्योंकि जगत के विनाश के समय केवल भस्म (राख) ही शेष रह जाती है तथा यही हाल हमारे शरीर के साथ भी होता है।
भगवान शिव को क्यों है प्रिय भांग और धतूरा :- आयुर्वेद के अनुसार भांग नशीला होने के साथ अटूट एकाग्रता देने वाला भी माना गया है। एकाग्रता के दम पर ही मनुष्य अपना कोई भी कार्य सिद्ध कर सकता है तथा ध्यान और योग के लिए भी एकाग्रता का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है इसलिए भगवान शिव को भांग और धतूरा अर्पित किया जाता है, जो एकाग्रता का प्रतीक है।
आचार्य पंडित सुधांशु तिवारी
प्रश्न कुण्डली विशेषज्ञ/ ज्योतिषाचार्य
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