Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Jun, 2020 01:18 PM
महात्मा बुद्ध एक बार अपने कुछ शिष्यों के साथ एक नगर में पहुंचे। वहां कुछ लोगों ने उन्हें भला-बुरा कहा। इससे शिष्य क्रोध और रोष से भरे हुए थे। महात्मा बुद्ध ने उनके भावों को पढ़ लिया। उन्होंने शिष्यों से कहा,
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महात्मा बुद्ध एक बार अपने कुछ शिष्यों के साथ एक नगर में पहुंचे। वहां कुछ लोगों ने उन्हें भला-बुरा कहा। इससे शिष्य क्रोध और रोष से भरे हुए थे। महात्मा बुद्ध ने उनके भावों को पढ़ लिया। उन्होंने शिष्यों से कहा,‘‘क्या बात है? आज सभी के चेहरों पर नाराजगी के भाव दिख रहे हैं?’’
एक शिष्य ने कहा,‘‘गुरुजी, हमें यहां से किसी और स्थान पर चलना चाहिए। कोई ऐसी जगह जहां हमारा आदर हो। यहां के लोग तो दुर्व्यवहार के सिवा कुछ जानते ही नहीं हैं।’’
बुद्ध मुस्करा दिए। उन्होंने शिष्यों से कहा,‘‘क्या किसी और जगह पर जाने से तुम सद्व्यवहार की अपेक्षा करते हो?’’
दूसरा शिष्य बोला,‘‘गुरुदेव कम-से-कम यहां से तो भले लोग ही मिलेंगे।’’
बुद्ध बोले,‘‘किसी स्थान को केवल इसलिए छोडऩा गलत है कि वहां के लोग दुर्व्यवहार करते हैं। हम तो संत हैं। हमें चाहिए कि उस स्थान को तब तक न छोड़ें जब तक वहां के हर प्राणी को उत्तम बनाने की राह पर न ले आएं। मान लो कि वे सौ बार दुर्व्यवहार करेंगे, लेकिन कब तक? आखिर उन्हें सुधरना ही होगा, लेकिन कोई व्यक्ति किसी अन्य को तभी उत्तम बना सकता है, जब वह स्वयं उत्तम हो।’’
बुद्ध का प्रिय शिष्य आनंद बोला, ‘‘गुरुजी उत्तम व्यक्ति कौन होता है?’’
बुद्ध ने कहा,‘‘उत्तम व्यक्ति ठीक उसी तरह होता है जिस प्रकार युद्ध में बढ़ता हुआ हाथी। युद्ध में हाथी हर तरफ से आते तीरों के प्रहार सहते हुए भी आगे बढ़ता है। उसी तरह उत्तम व्यक्ति भी दुष्टों के अपशब्द को सहन करते हुए अपने कार्य करता चलता है। उत्तम व्यक्ति स्वयं को वश में कर चुका होता है। स्वयं को वश में करने वाले प्राणी से उत्तम कोई हो ही नहीं सकता।’’
बुद्ध का उत्तर सुनकर सभी शिष्य उत्तम प्राणी बनने के लिए दृढ़ संकल्प हो गए।