कल रात भूल से देख लिया है चांद तो कलंक से बचने के लिए आज करें ये काम

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Sep, 2019 07:26 AM

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भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को सिद्धि विनायक कलंक चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) के नाम से जाना जाता है। श्री गणेश जी को वैदिक देवता की उपाधि दी गई है। उन्हें विघ्नहर्ता कहते हैं। सभी गणों के स्वामी होने के कारण इनका नाम गणेश है।

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भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को सिद्धि विनायक कलंक चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) के नाम से जाना जाता है। श्री गणेश जी को वैदिक देवता की उपाधि दी गई है। उन्हें विघ्नहर्ता कहते हैं। सभी गणों के स्वामी होने के कारण इनका नाम गणेश है। उनकी पूजा 33 कोटि देवी-देवताओं में सर्वप्रथम होती है। ऋग्वेद में लिखा है ‘न ऋते त्वम क्रियते कि चनारे’ अर्थात हे गणेश तुम्हारे बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जाता। ॐ के उच्चारण से वेद पाठ प्रारंभ होता है। ॐ में गणेश की मूर्ति सदा स्थित रहती है। गणेश आदि देव हैं। वैदिक ऋचाओं में उनका अस्तित्व हमेशा रहा है। गणेश पुराण में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के द्वारा उनकी पूजा किए जाने का उल्लेख मिलता है।

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पृथ्वी पर जीवन सूर्य एवं चंद्रमा की कृपा से ही है। अगर हमारे सौर मंडल में इन ग्रहों में से एक भी न होता तो जीवन की कल्पना करना भी बेकार है। सूर्य एवं चंद्रमा ही प्राण शक्ति के कारक हैं। चंद्र देव की कलाओं पर समस्त भारतीय ज्योतिष आधारित है। पश्चिम ज्योतिष का आधार सूर्य है। चंद्रमा जल का कारक है शरीर में 70 प्रतिशत जल का भाग है। चंद्रमा मन का कारक है। इसी से मानव जीवन पर इसके प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। 

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जीवन के समस्त क्रिया-कलापों का सीधा संबंध मन से होता है। कलंक चतुर्थी पर चंद्रमा के दर्शन करने की मनाही है। इस अवसर पर ऐनक लगा कर भी दर्शन करना निषेध है। अगर भूलवश चंद्र दर्शन हो जाए तो

गणेश चतुर्थी (या कलंक चतुर्थी) की कथा का श्रवण किसी विद्वान जन से करना चाहिए। 

मां के चरणों में बैठकर भूल का पश्चाताप करने से निवारण संभव है। 

चावल का दान किसी ब्राह्मण को देने से भी पश्चाताप संभव है।

भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने से भी संकट टल जाता है। 

पानी में दूध डालकर छबील लगाने से भी लाभ होता है।

'श्रीमद् भागवत्' के 10वें स्कन्ध के 56-57वें अध्याय में दी गई 'स्यमंतक मणि की चोरी' की कथा का श्रवण करें।

मिथ्या आरोप निवारक मंत्र: सिंह प्रसेनम् अवधात, सिंहो जाम्बवता हत:। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्रास स्वमन्तक॥

गणेश जी की प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमा पर 21 लड्डूओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर बाकी बचे हुए ब्राह्मणों में बांट दें।

आईने में अपनी शक्ल देखकर उसे बहते पानी में बहा दें।

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