Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Sep, 2023 09:08 AM
एक बार मेवाड़ के राजा का एक चारण अकबर के दरबार में पहुंचा। बादशाह का अभिवादन करने से पहले उसने अपनी पगड़ी उतार दी। पगड़ी उतारकर अभिवादन करने
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Inspirational Context: एक बार मेवाड़ के राजा का एक चारण अकबर के दरबार में पहुंचा। बादशाह का अभिवादन करने से पहले उसने अपनी पगड़ी उतार दी। पगड़ी उतारकर अभिवादन करने से अकबर को क्रोध आ गया लेकिन खुद को नियंत्रित करते हुए उन्होंने कहा, “राजपूत राजा का चारण होने के कारण तुम्हें राज दरबार के नियमों की समझ तो होगी ही। तुम्हें पता होगा कि एक चारण को नंगे सिर बादशाह का अभिवादन नहीं करना चाहिए। फिर तुमने ऐसा क्यों किया ?
चारण बोला, “जहांपनाह, मुझे दरबार के इस नियम का ज्ञान है कि अभिवादन करते समय पगड़ी नहीं उतारनी चाहिए। लेकिन मेरे सिर पर जो पगड़ी है, वह मामूली नहीं है।”
अकबर ने पूछा, “क्या इसमें हीरे-जवाहरात जड़े हैं कि सिर झुकाते ही वे छिटक कर गिर जाएंगे?”
चारण ने कहा, “हजूर, यह सचमुच बहुमूल्य है।”
एक बार मेवाड़ के महाराणा प्रताप ने प्रसन्न होकर मुझे यह पगड़ी भेंट की थी और कहा था कि इसकी लाज रखना। जब जंगलों की खाक छानने और घास की रोटियां खाने के बावजूद महाराणा आपके सामने कभी नतमस्तक नहीं हुए तो उनके द्वारा दी गई पगड़ी को आपके सामने झुकाने का मुझे कोई अधिकार नहीं है। यदि मैं ऐसा करता तो राणा के स्वाभिमान को चोट पहुंचती। एक चारण अपनी जान दे सकता है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं कर सकता जिससे उसके स्वामी के स्वाभिमान को ठेस पहुंचे।”
चारण की बात सुनकर अकबर ने कहा, “मैं तुम्हारे स्वाभिमान को देखकर बहुत खुश हूं।” इसके बाद उन्होंने दरबारियों को आज्ञा दी कि चारण को ढेर सारा इनाम देकर विदा किया जाए।