Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Mar, 2024 11:27 AM
स्वामी विवेकानंद का एक शिष्य उनके पास आया और कहा, “स्वामी जी, मैं आपकी तरह भारत की संस्कृति और रीति-रिवाज का प्रचार-प्रसार करने के लिए अमरीका जाना चाहता हूं। यह मेरी
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Inspirational Context: स्वामी विवेकानंद का एक शिष्य उनके पास आया और कहा, “स्वामी जी, मैं आपकी तरह भारत की संस्कृति और रीति-रिवाज का प्रचार-प्रसार करने के लिए अमरीका जाना चाहता हूं। यह मेरी पहली यात्रा है। आप मुझे विदेश जाने की अनुमति और अपना आशीर्वाद दें।”
स्वामी जी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा फिर कहा, “सोच कर बताऊंगा।”
शिष्य हैरत में पड़ गया।
उसने फिर कहा, “स्वामी जी मैं आपकी तरह सादगी से अपने देश की संस्कृति का प्रचार करूंगा। मेरा ध्यान और किसी चीज पर नहीं जाएगा।”
विवेकानंद ने फिर कहा, “सोच कर बताऊंगा।”
शिष्य ने समझ लिया कि स्वामी जी उसे विदेश नहीं भेजना चाहते इसलिए ऐसा कह रहे हैं फिर भी वह उनके पास ही ठहर गया।
कुछ दिनों के बाद स्वामी जी ने उसे बुलाया और कहा, “तुम अमरीका जाना चाहते हो तो जाओे। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।
शिष्य ने सोचा कि इतनी छोटी-सी बात के लिए इतने दिन सोचने में क्यों लगे। उसने अपनी यह दुविधा स्वामी जी को बताई।
स्वामी जी ने कहा, “मैं इतने दिनों से यह समझना चाहता था कि तुम्हारे अंदर कितनी सहनशक्ति है। कहीं तुम्हारा आत्मविश्वास डगमगा तो नहीं रहा है। लेकिन तुम इतने दिनों तक यहां रह कर निर्विकार भाव से मेरे आदेश की प्रतीक्षा करते रहे। न क्रोध किया न जल्दबाजी की और न ही धैर्य खोया।”
जिसमें इतनी सहनशक्ति और गुरु के प्रति प्रेम का भाव होगा, वह शिष्य कभी भटकेगा नहीं। मेरे अधूरे काम को वही आगे बढ़ा सकता है। मैं इसी बात की परीक्षा ले रहा था। शिष्य स्वामी जी की इस अनोखी परीक्षा से अभिभूत हो गया।