Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Jul, 2019 01:20 PM
एक बार सेवाग्राम में गांधी जी से एक कार्यकर्ता ने पूछा, ‘‘आपके जीवन पर किसका प्रभाव अधिक पड़ा?’’
ये नहीं देखा तो क्या देखा (Video)
एक बार सेवाग्राम में गांधी जी से एक कार्यकर्ता ने पूछा, ‘‘आपके जीवन पर किसका प्रभाव अधिक पड़ा?’’
गांधी जी ने कहा, ‘‘वैसे तो टॉल्सटॉय और रस्किन से भी मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं, मगर मेरे ऊपर सबसे ज्यादा प्रभाव भाई रायचंद का ही पड़ा है।’’
कार्यकर्ता ने पूछा कि वह कौन थे? गांधी जी ने कहा, ‘‘भाई रायचंद का बहुत बड़ा व्यापार था। वह हीरे-मोती की परख करते थे और लाखों का कारोबार करते थे।’’
कार्यकर्ता को यह बात थोड़ी अटपटी लग रही थी कि गांधी जी आखिर एक व्यापारी से इतने प्रभावित हुए।
गांधी जी ने उसकी मनोदशा भांपकर कहा, ‘‘वह कोई साधारण कारोबारी नहीं थे। उनकी गद्दी पर धार्मिक पुस्तकें रखी होती थीं। बगल में वह एक डायरी भी रखते थे। जब फुर्सत मिलती वह धार्मिक पुस्तक पढऩे लगते। पुस्तक में मन को छूने वाली कोई भी बात होती तो वह उसे डायरी में नोट कर लेते। जो व्यक्ति लाखों के लेन-देन में उलझा हो वह उस बीच मौका पाते ही ज्ञान की पुस्तक पढऩे लगे और डायरी में उसे लिखने लगे तो वह व्यापारी नहीं बल्कि शुद्ध ज्ञानी कहा जाएगा। जब भी मैं उनकी दुकान पर पहुंचता था, वह धर्म-चर्चा शुरू कर देते थे।’’
गांधी जी ने यह भी कहा, ‘‘उसके बाद मैं कई संत-महात्माओं से मिला, मगर किसी ने मुझे इतना प्रभावित नहीं किया। मुझसे लोग पूछते कि आखिर रायचंद में क्या खास बात है? मुझे उनके कर्मयोग ने प्रभावित किया। आम धारणा है कि एक काम करते हुए दूसरा काम करना कठिन है मगर रायचंद को देखकर लग रहा था कि मनुष्य सांसारिक जीवन जीते हुए भी संत और ज्ञानी हो सकता है। इसी कारण मुझे रायचंद सच्चे कर्मयोगी लगे।’’
कार्यकर्ता को समझ आ गया कि व्यक्ति के विचारों और उसकी प्रवृत्ति की असली परख इस बात से होती है कि वह विपरीत परिस्थितियों में उन पर किस हद तक बना रहता है।