Krishna Janmashtami: जब श्री कृष्ण ने कंस के हाथी को मार डाला...

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Sep, 2023 10:01 AM

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कंस ने भगवान श्री कृष्ण को मार डालने के उद्देश्य से ही धनुष यज्ञ का आयोजन किया था। श्री कृष्ण पुरवासियों से धनुष यज्ञ का स्थान पूछते हुए कंस की रंगशाला में पहुंचे। उन्होंने कंस

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Krishna Janmashtami 2023: कंस ने भगवान श्री कृष्ण को मार डालने के उद्देश्य से ही धनुष यज्ञ का आयोजन किया था। श्री कृष्ण पुरवासियों से धनुष यज्ञ का स्थान पूछते हुए कंस की रंगशाला में पहुंचे। उन्होंने कंस के रक्षकों के रोकने पर बाएं हाथ से धनुष को उठा लिया और सबके देखते-देखते उसके दो टुकड़े कर डाले। जब धनुष के रक्षकों ने श्री कृष्ण को मारने के लिए घेर लिया तो श्री कृष्ण ने धनुष के उन्हीं टुकड़ों से उन सबको यमलोक भेज दिया।

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जब कंस ने सुना कि श्री कृष्ण और बलराम जी ने धनुष तोड़ डाला है और रक्षकों का संहार कर डाला है तो वह बहुत घबराया। उसे रात में बहुत देर तक नींद नहीं आई। उसे मृत्युसूचक बहुत से अपशकुन दिखाई देने लगे। उनके कारण उसे बहुत चिंता हो गई। चारों तरफ श्री कृष्ण और बलराम जी के रूप में उसे अपनी मृत्यु दिखाई देने लगी। किसी तरह नाना प्रकार की आशंकाओं में जागते हुए उसने रात बिताई।

दूसरे दिन कंस ने श्री कृष्ण को फिर मारने की इच्छा से मल्ल-क्रीड़ा का आयोजन किया। राज-कर्मचारियों ने रंग भूमि को भली-भांति सजाया। तुरही, भेरी आदि बाजे बजने लगे। लोगों के बैठने के स्थान को झंडियों और वंदनवारों से सजाया गया। सब लोग यथास्थान बैठ गए। राजा कंस अपने मंत्रियों के साथ श्रेष्ठ सिंहासन पर जा बैठा। पहलवानों के ताल ठोंकने के साथ बाजे भी बजने लगे। चाणूर, मुष्टिक आदि कंस के प्रधान पहलवान अखाड़े के आसपास आकर बैठ गए। इसी समय भोजराज कंस ने नंद आदि गोपों को बुलवाया। उन लोगों ने कंस को तरह-तरह के उपहार भेंट किए और फिर यथास्थान बैठ गए।

भगवान श्री कृष्ण ने रंग भूमि के दरवाजे पर पहुंच कर देखा कि वहां कुवलयापीड नामक हाथी खड़ा है। उन्होंने अपनी कमर कस ली और महावत को ललकारा, ‘‘महावत! ओ महावत!! हम दोनों को रास्ता दे दो, नहीं तो मैं हाथी के साथ तुझे भी यमराज के घर पहुंचा दूंगा।’’

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भगवान श्री कृष्ण के धमकाने पर महावत तिलमिला उठा। उसे तो श्री कृष्ण को मार डालने का आदेश था ही इसलिए उसने अंकुश की मार से कुवलयापीड को क्रोधित कर श्री कृष्ण की ओर बढ़ाया। कुवलयापीड ने श्री कृष्ण को झपटकर अपनी सूंड में लपेट लिया। श्री कृष्ण उसे जोर से एक घूंसा जमा कर उसके पैरों के बीच जा छिपे। उसके बाद वे उस बलवान हाथी की पूंछ पकड़ कर उसे सौ हाथ तक घसीट लाए।

सबके देखते-देखते भगवान श्री कृष्ण ने एक हाथ से कुवलयापीड की सूंड पकड़ कर उसे धरती पर पटक दिया। उसके गिर जाने पर खेल-खेल में पैरों से दबा कर उसके दोनों दांत उखाड़ लिए और उन्हीं दांतों से हाथी और महावत दोनों का काम तमाम कर दिया।

भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी ने जिस समय हाथी के दांत को लाठियों की तरह अपने कंधों पर रख कर रंग भूमि में प्रवेश किया, उस समय उनकी शोभा देखने योग्य थी। जब कंस ने देखा कि इन दोनों ने कुवलयापीड को मार डाला है तब उसकी समझ में यह बात आ गई कि इनको जीतना बड़ा कठिन है। उस समय वह और भी घबरा गया। रंग भूमि में चारों तरफ श्री कृष्ण-बलराम की ही चर्चा होने लगी।

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