भगवान बुद्ध: अमृत की खेती करता हूं मैं

Edited By Jyoti,Updated: 07 Apr, 2018 10:37 AM

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भगवान बुद्ध नगर-नगर भिक्षाटन करते और जो भी मिल जाता, उससे योग साधना या ध्यान विधियां सीखकर कठोर तप करते। तप के दौरान वह एक वक्त सिर्फ तिल और चावल ही ग्रहण करते। एक बार भगवान बुद्ध भिक्षा के लिए एक किसान के यहां पहुंचे। तथागत को भिक्षा के लिए आया...

भगवान बुद्ध नगर-नगर भिक्षाटन करते और जो भी मिल जाता, उससे योग साधना या ध्यान विधियां सीखकर कठोर तप करते। तप के दौरान वह एक वक्त सिर्फ तिल और चावल ही ग्रहण करते। एक बार भगवान बुद्ध भिक्षा के लिए एक किसान के यहां पहुंचे। तथागत को भिक्षा के लिए आया देखकर किसान उपेक्षा से बोला, ‘‘श्रमण, मैं हल जोतता हूं और तब खाता हूं।’’


तुम्हें भी हल जोतना और बीज बोना चाहिए और तब खाना चाहिए। बुद्ध ने कहा, ‘‘हे अन्नदाता, मैं भी खेती ही करता हूं। इस पर किसान को जिज्ञासा हुई और वह बोला, ‘‘मैं न तो तुम्हारे पास हल देखता हूं, न बैल और न ही खेती का स्थल। तब कैसे कहते हो कि आप भी खेती ही करते हो। आप कृपया अपनी खेती के संबंध में समझाइए।’’


बुध ने कहा, ‘‘मेरे पास श्रद्धा भक्ति, आस्था, आदर, सम्मान और स्नेह भाव का बीज है। चित की शुद्धि, धर्म लाभ के लिए किया जाने वाला व्रत और नियम, इंद्रीय निग्रह तप, योग साधना, समाधि, ब्रह्मचर्य, तपस्या रूपी वर्षा, जीव मात्र रूपी जोत और हल है। मेरे पास पापभीरूता का दंड है। मेरे पास काले लोहे से सोना बनाने वाले सद्विचारों का पारस रूपी रस्सा है, स्मृति और जागरूकता रूपी हल की फाल और पेनी है।’’

मैं वचन और कर्म में संयत रहता हूं। मैं अपनी इस खेती को बेकार के नकारात्मक विचारों की घास से मुक्त रखता हूं और आनंद की फसल काट लेने तक प्रयत्नशील रहने वाला हूं। प्रमाद के ही कारण आसुरी वृत्ति वाले मनुष्य मृत्यु से पराजित होते हैं और अप्रमाद यानी संत प्रवृत्ति वाले ब्रह्म स्वरूप अमर हो जाते हैं। यही अप्रमाद मेरा बैल है, जो बाधाएं देखकर भी पीछे मुंह नहीं मोड़ता है। वह मुझे सीधा शांति धाम तक ले जाता है। इस प्रकार मैं भी तुम्हारी तरह किसान हूं, अमृत की खेती करता हूं।
 

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