मंदिर में 24 घंटे चलता है भंडारा, माता की चौकी में होती हैं मुरादें पूरी

Edited By ,Updated: 02 Dec, 2016 09:53 AM

maa jwala uchehra dham

उमरिया के उचेहरा गांव के लोगों को हर रोज भंडारे का आमंत्रण आता है। यहां के लोगों के घरों में खाना नहीं बनता। मंदिर में माता की चौकी लगती है अौर लोग उसमें जाकर भर पेट

उमरिया के उचेहरा गांव के लोगों को हर रोज भंडारे का आमंत्रण आता है। यहां के लोगों के घरों में खाना नहीं बनता। मंदिर में माता की चौकी लगती है अौर लोग उसमें जाकर भर पेट भोजन ग्रहण करते हैं। यह भंडारा सालों से चल रहा है। प्रतिदिन कोई न कोई भक्त भंडारे की कमान संभाल लेता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मां की कृपा से उन्हे दो वक्त का खाना मिल जाता है। उन्हें चूल्हा जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। 

 

मध्यप्रदेश राज्य के उमरिया जिले से करीब 30 कि.मी. दूर अौर नौरोजाबाद स्टेशन से 4 कि.मी. दूर मां ज्वाला उचेहरा धाम स्थित है। यहां पर करौंदा के पेड़ के नीचे मां ज्वाला देवी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर में 24 घंटे भंडारे का आयोजन होता है। गांव के लोग इस भंडारे का प्रसाद ग्रहण करते हैं। यही कारण है कि यहां के लोगों के घरों में खाना नहीं बनता। 

 

कहा जाता है कि एक भक्त घोरचट नदी के तट पर घने जंगल में प्रतिदिन सुबह-शाम मां ज्वाला की पूजा करने जाता था। एक दिन मां ज्वाला ने भक्त के स्वप्न में आकर कहा कि मैं तुम्हारी भक्ति से अति प्रसन्न हूं, मांगो तुम्हें क्या चाहिए। भक्त ने कहा मां मुझे धन-दौलत और दुनिया की तमाम सुख सोहरत से कोई सरोकार नहीं है। आप इस गांव में रहो। मां ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर शक्ति स्वरूप में सदैव गांव में रहकर भक्त की इच्छा पूरी की। उसके बाद से यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र बन गया। 
 

यहां हर माह की पूर्णिमा के बाद पहले सोमवार रात को माता की चौकी लगती है। माता की चौकी में पंडा को माता के भाव आते हैं। भक्त चौकी में अपनी समस्या की अर्जी लगाते हैं अौर मन्नत पूरी होने पर भंडारा करवाते हैं। भंडारे में तीन प्रकार का प्रसाद मां को भेंट किया जाता है। जिनमें प्रथम राज भोग जिसमें खिचड़ी का प्रसाद, दूसरा मोहन भोग जिसमें दूध से बने खीर का प्रसाद तथा तीसरा देवी भोग जिसमें हलवा-पूरी का प्रसाद भक्तों के बीच में बांटा जाता है। मंदिर में देश के कोने-कोने से भक्त आते हैं। इस गांव में भंडारे का काम नहीं रुकता। गांव वाले बाहर से आने वाले भक्तों की सेवा में लग जाते हैं। 

 

यहां चैत्र नवरात्र में तीन माह पूर्व भक्त 2 हजार जवारे बोता है। नवरात्र के अंतिम दिन जवारे का विसर्जन होता है। मां ज्वाला के मंदिर में नि:स्वार्थ भाव से जो भी भक्त आता है मां उसकी झोली अवश्य भर देती है। यहां पर भंडारे का आयोजन भी सभी के सहयोग से होता है।
 

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