Mahashivratri 2022: ये हैं महाशिवरात्रि से जुड़ी कथाएं और मंत्र, आप भी उठाएं लाभ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Mar, 2022 10:55 AM

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फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है

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Mahashivratri 2022: फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। इसी रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए। महाशिवरात्रि पर्व का व्रत आत्मा को पवित्र करने वाला तथा समस्त पापों का नाश करने वाला है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की अद्र्धरात्रि के समय भगवान शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे, इसीलिए भगवान शिव के प्राकट्य के समय यानी आधी रात में जब चौदस हो, उसी दिन यह व्रत किया जाता है। इस पर्व की पूजा में भगवान भोलेनाथ जी को प्रिय बिल्व पत्र का अत्यंत महत्व है। 

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शिव पुराण के अनुसार किस प्रकार एक शिकारी ने एक बार वन में देर हो जाने के कारण एक बिल्व वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया जिसके नीचे शिवलिंग था। शिकार की प्रतीक्षा में चारों प्रहर उसके हाथ से छूटे बिल्व पत्र वृक्ष के ठीक नीचे शिवलिंग पर अपूर्ति होते गए जबकि शिकारी को अपने शुभ कृत्य का आभास ही नहीं था। 

तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे उसकी इच्छापूर्ति का आशीर्वाद दिया। इस कथा से स्पष्ट है कि भगवान शिव अतिशीघ्र अपने भक्तों पर प्रसन्न होते हैं तथा इस दिन भगवान सदाशिव का पूजन कितना महत्वपूर्ण है। भगवान रुद्र संतुष्ट हो जाएं तो वह ब्रह्मपद, विष्णुपद, देवताओं सहित देवेन्द्र पद अथवा तीनों लोकों का आधिपत्य प्रदान कर सकते हैं।

समस्त लक्षणों से हीन अथवा सब पापों से युक्त मनुष्य भी यदि पवित्र हृदय से भगवान शिव का ध्यान करता है तो वह अपने समस्त पापों को नष्ट कर देता है। ऋषि मृकंडु जी के अल्पायु पुत्र मार्कंडेय जी ने दीर्घायु वरदान की प्राप्ति के उद्देश्य से शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठ कर इसका अखंड जाप किया। 

ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। 
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ 

समय पूरा होने पर मार्कंडेय जी के प्राण लेने के लिए यमदूत आए परंतु उन्हें शिव जी की तपस्या में लीन देखकर उन्होंने यमराज के पास लौट कर पूरी बात बताई। तब मार्कंडेय जी के प्राण लेने के लिए यमराज स्वयं आए। यमराज ने अपना पाश जब मार्कंडेय जी पर डाला, तो बालक मार्कंडेय शिवलिंग से लिपट गए। यमराज की आक्रामकता पर शिव जी बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने स्वयं प्रकट होकर बालक मार्कंडेय की रक्षा कर उन्हें दीर्घायु का वरदान देकर विधान ही बदल दिया।

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भगवान शिव कल्याण एवं सुख के मूल स्रोत हैं। जो अघोर हैं, घोर हैं, घोर से भी घोरतर हैं और जो सर्वसंहारी रुद्ररूप हैं, वह भगवान शिव वामदेव, ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, रुद्र, काल, कलविकरण, बलविकरण, बल, बल प्रमथन, सर्व भूतदमन तथा मनोन्मन आदि नामों से प्रतिपादित होते हैं, इन नाम रूपों में भगवान शिव को सदा नमस्कार हो। ऐसी भावना करनी चाहिए। 

‘ओम नम: शिवाय’ मंत्र का जप समस्त सांसारिक कष्टों को दूर करने वाला महाशक्तिशाली औषध पंचाक्षरी मंत्र है जो भगवान शिव को अत्यंत प्रिय तथा शीघ्र प्रसन्न करने वाला है।

महाशिवरात्रि पर्व हमें अपने जीवन में अज्ञान रूपी अंधकार से मुक्त होने का संदेश देता है। यह पर्व हमें प्रेरणा देता है कि हमें अपने जीवन को उसी प्रकार निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज के कल्याण में लगाना चाहिए जिस प्रकार भगवान शिव ने समस्त विश्व के कल्याण के लिए समुद्र मंथन के समय निकले भयंकर हलाहल विष को कंठ में धारण किया और नीलकंठ कहलाए। 

महाशिवरात्रि की रात को ही भगवान शिवशंकर व माता शक्ति का विवाह भी संपन्न हुआ था। इस विवाह में शिवजी बारात लेकर पार्वती जी के यहां पहुंचे। भगवान शिवजी की बारात में भगवान विष्णु जी, ब्रह्मा जी, भगवान शिव के सभी गण, ऋषि-मुनि, देव, दानव, दैत्य आदि सम्मिलित हुए। 

भगवान शिव पशुपति हैं, अर्थात सभी चराचर के देवता भी हैं, इसलिए यहां तक कि भूत-पिशाच भी उनके विवाह में शामिल हुए। वेद जिनके नि:श्वास हैं, जिन्होंने वेदों से सारी सृष्टि की रचना की और जो विद्याओं के तीर्थ हैं, ऐसे शिव की मैं वंदना करता हूं।

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