Edited By Jyoti,Updated: 08 Mar, 2020 02:46 PM
चीन में मोउत्सु नाम के एक विचारक हुए। उनके पास अनेक लोग मार्गदर्शन के लिए आया करते थे। किसी गूढ़ बात को समझाने का उनका तरीका इतना सरल था कि लोग आसानी से मर्म
शास्त्रों की बात, जाने धर्म के साथ
चीन में मोउत्सु नाम के एक विचारक हुए। उनके पास अनेक लोग मार्गदर्शन के लिए आया करते थे। किसी गूढ़ बात को समझाने का उनका तरीका इतना सरल था कि लोग आसानी से मर्म समझ जाते थे। एक बार त्सुची नाम का एक व्यक्ति उनके पास आया। वह कुछ ज्यादा ही जिज्ञासु लग रहा था। उसने मोउत्सु से कहा, ''आप ज्ञानी हैं, धर्मशास्त्रों की गहरी बातें भी बड़ी सरलता से उदाहरण देकर समझा देते हैं। मेरे मन में भी एक जिज्ञासा पल रही है और मुझे विश्वास है कि केवल आप ही ऐसे हैं जो उसे शांत कर सकते हैं। अगर आपकी अनुमति हो तो मैं अपनी जिज्ञासा आपके समक्ष रखूं?"
"मोउत्सु ने कहा, ''पूछो भाई, क्या पूछना चाहते हो? मुझे तो प्रसन्नता ही होगी यदि मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूं।
"त्सुची ने पूछा, ''महाशय, लोग कहते हैं कि अधिक बोलना अच्छी बात नहीं है। कृपया विस्तार से इस कथन की सच्चाई को समझाएं।"
मोउत्सु ने कहा, ''देखो, बरसात के मौसम में तालाब में मेंढक लगातार टर्र-टर्र करते रहते हैं। इसी प्रकार हर मौसम में मच्छर या मक्खियां भी भिनभिनाती रहतीं हैं, तो आप खुद सोचो इन सबके टर्र-टर्र करने और भिनभिनाने का क्या महत्व है? कौन उन पर ध्यान देता है? कोई नहीं। किन्तु मुर्गा सुबह निश्चित समय पर बांग लगाता है, वह दिन-रात चिल्लाता नहीं रहता, तो सब लोग उसकी आवाज सुनते हैं और उस पर ध्यान देते हैं।
आवाज सुनते ही कह उठते हैं-मुर्गा बांग दे रहा है, उठो सवेरा हो गया। अब तो समझ गए होंगे कि हमें मितभाषी क्यों होना चाहिए। मितभाषी होना, मृदुभाषी होना मननुष्य के लिए सम्मान की बात है। व्यर्थ ही कुछ भी समय-असमय बड़बड़ाते रहने में आदमी की शोभा नहीं है। ज्यादा बोलने वाले की बात महत्वहीन बन जाती है, कोई उसे गंभीरता से नहीं लेता।
"त्सुची को अपने सवाल का जवाब मिल चुका था।