Edited By Jyoti,Updated: 09 Apr, 2021 12:01 PM
एक बार धर्म प्रचार के सिलसिले में महात्मा गौतम बुद्ध अपने कुछ अनुयायियों के साथ एक गांव में घूम रहे थे। काफी देर तक भ्रमण करते रहने से उन्हें बहुत प्यास लग गई थी।
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एक बार धर्म प्रचार के सिलसिले में महात्मा गौतम बुद्ध अपने कुछ अनुयायियों के साथ एक गांव में घूम रहे थे। काफी देर तक भ्रमण करते रहने से उन्हें बहुत प्यास लग गई थी। उन्होंने एक शिष्य को पास के गांव से पानी लाने के लिए कहा। शिष्य जब गांव में पहुंचा तो उसने देखा कि वहां एक छोटी-सी नदी बह रही है जिसमें काफी लोग अपने वस्त्र धो रहे थे और कई अपनी गऊओं को नहला रहे थे। इस कारण नदी का पानी काफी गंदा हो गया था।
शिष्य को नदी के पानी का यह हाल देख लगा कि गुरु जी के लिए यह गंदा पानी ले जाना उचित नहीं होगा। इस तरह वह बिना पानी के ही वापस आ गया। बुद्ध ने पानी लाने के लिए दूसरे शिष्य को भेजा। इस बार वह शिष्य उनके लिए मटके में पानी भर कर लाया।
यह देख महात्मा बुद्ध थोड़ा आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने शिष्य से पूछा गांव में बहने वाली नदी का पानी तो गंदा था। फिर यह पानी कहां से लाए?
शिष्य बोला, ‘‘हां गुरु जी, उस नदी का जल सही में बहुत गंदा था परन्तु जब सभी अपना कार्य खत्म करके चले गए तब मैंने कुछ देर वहां ठहर कर पानी में मिली मिट्टी के नदी के तल में बैठने का इंतजार किया। जब मिट्टी नीचे बैठ गई तो पानी साफ हो गया। वही पानी लाया हूं।’’
पानी पीने के बाद बुद्ध ने कहा कि हमें जीवन में दुख आने पर और बुराइयों को देखकर अपना साहस नहीं खोना चाहिए। गंदगी समान ये समस्याएं स्वयं ही धीरे-धीरे खत्म हो जाती हैं।