Edited By Jyoti,Updated: 03 Jun, 2021 05:15 PM
आजादी के दो प्रख्यात क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां बड़े गहरे दोस्त थे। राम प्रसाद बिस्मिल कट्टर आर्य समाजी थे
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आजादी के दो प्रख्यात क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां बड़े गहरे दोस्त थे। राम प्रसाद बिस्मिल कट्टर आर्य समाजी थे, तो अशफाक उल्ला खां पांचों वक्त की नमाज के सख्त पाबंद मुसलमान। दोनों ही राष्ट्रभक्त अलग-अलग धर्मों के होते हुए भी धार्मिक कट्टरता से बहुत दूर थे। राष्ट्र की सेवा ही उनका प्रमुख धर्म था। आजादी की लड़ाई के लिए एक जान थे।
एक बार शाहजहांपुर में आर्य समाज मंदिर की ओर दंगाइयों की खतरनाक भीड़ बढ़ रही थी। वे मंदिर को तोड़कर उसे फूंक देना चाहते थे। बलवाइयों की उस भीड़ के सामने अशफाक खां ढाल की तरह अकेले मंदिर के द्वार पर खड़े हो गए और चीख कर बोले, ‘‘सुनो नामुरादो। मुझे इबादतगाह, वह चाहे जिस धर्म की भी हो जान से प्यारी है। मेरे हाथ में पिस्तौल है और इसमें छ: गोलियां हैं। ध्यान रहे, मेरा निशाना अचूक है। किसी भी गंदे इरादे से अगर आगे पैर बढ़ाए तो 6 आदमियों की जान तो जरूर ले लूंगा, चाहे पीछे मेरी जान चली जाए।’’
तत्काल ही उग्र दंगाइयों की भीड़ पीछे हट गई।
अंग्रेजों ने जब अशफाक और बिस्मिल दोनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर फांसी की सजा सुनाई थी तो कुछ क्रांतिकारियों ने अशफाक को जेल से छुड़ाने की सफल योजना बनाकर गुप्त रूप से अशफाक को सूचना भेजी।
प्रस्ताव सुनकर अशफाक ने कहला भेजा, ‘‘फांसी की सजा तो राम को भी सुनाई गई है। बिना राम के अशफाक नहीं रह सकता और अशफाक के बिना राम नहीं रह सकता। छुड़ाना है तो राम को भी छुड़वाओ। नहीं तो दोनों दोस्त इकट्ठे मौत को गले लगाएंगे।’’
और दोनों दोस्त हंसते-हंसते फांसी के फंदों पर झूल गए। -रमेश जैन