Edited By Lata,Updated: 19 May, 2019 01:09 PM
एक बार की बात है। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर कोलकाता की भीड़ भरी सड़क पर गुजर रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक वृद्ध को सिर झुकाए परेशानी की हालत में देखा।
ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
एक बार की बात है। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर कोलकाता की भीड़ भरी सड़क पर गुजर रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक वृद्ध को सिर झुकाए परेशानी की हालत में देखा। उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘भाई, तुम्हें क्या दुख है?’’
वृद्ध ने अपना दुखड़ा सुनाना उचित न समझकर टालने की कोशिश की परंतु ईश्वरचन्द्र ने सहानुभूति जताते हुए कहा, ‘‘आप अपनी मुश्किल तो बताइए। शायद मैं आपकी कुछ मदद कर सकूं।’’
ईश्वरचन्द्र की आग्रह भरी वाणी सुनकर वृद्ध कुछ आश्वस्त हुआ और उसने कहा, ‘‘मैं एक गरीब आदमी हूं। बेटी के विवाह के लिए किसी से कर्ज लिया था। लाख कोशिश करने पर भी उसे नहीं चुका सका। अब उस व्यक्ति ने मुझ पर मुकद्दमा कर दिया है। कर्ज का बोझ तो पहले से था, अब कोर्ट-कचहरी का झंझट अलग से है।’’
ईश्वरचन्द्र ने कहा, ‘‘चिंता न करें। कुछ न कुछ हल जरूर निकलेगा।’’
उस गरीब आदमी से ईश्वरचन्द्र ने मुकद्दमे की अगली तारीख, अदालत का नाम आदि पूरा विवरण लिया और वहां से चले गए। मुकद्दमे की निश्चित तारीख पर वह वृद्ध अदालत पहुंचा और एक कोने में बैठ कर अपने नाम की पुकार का इंतजार करने लगा। पैसों का इंतजाम हो नहीं पाया था इसलिए वह काफी घबराया हुआ था। जब पुकार नहीं हुई तो उसने अदालत के कर्मचारियों से पूछताछ की। पता चला कि किसी ने उसके कर्ज की पूरी रकम जमा करवा दी है और मुकद्दमा खारिज हो गया है। पूछताछ करने पर उस वृद्ध को पता चला कि उसका कर्ज उतारने वाले धर्मात्मा पुरुष वही थे जो कुछ दिन पहले उसे सड़क पर मिले थे।
इस तरह ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने उस व्यक्ति के जीवन के एक बड़े संकट को दूर किया। उन्होंने बिना दिखावा एवं प्रदर्शन किए इस तरह सहयोग करके उस व्यक्ति के दुख को दूर कर दिया। ऐसी थी ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की सज्जनता, दयालुता एवं सहयोगवृत्ति।