माता रानी का ये मंदिर उड़ा देगा आपके होश, जानिए क्या है इससे जुड़ी खास बात?

Edited By Updated: 09 Jan, 2022 07:27 PM

nirai mata temple chhattisgarh

क्या आपने कभी सुना है कि मां के दरबार में महिलाएं नहीं जा सकती। जी हां निरई माता के इस मंदिर में महिलाओं का जाना और पूजा-पाठ करना वर्जित है। सिर्फ ये ही नहीं बल्कि महिलाओं को यहां

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क्या आपने कभी सुना है कि मां के दरबार में महिलाएं नहीं जा सकती। जी हां निरई माता के इस मंदिर में महिलाओं का जाना और पूजा-पाठ करना वर्जित है। सिर्फ ये ही नहीं बल्कि महिलाओं को यहां के प्रसाद को खाने की इजाजत तक भी नहीं है। ये ही नहीं। जहां एक तरफ माता रानी के नाम से ही सपष्ट है। माता का हार-श्रृंगार आदि। वहीं इस मंदिर में मां को सुहाग का सामान नहीं चढ़ाया जाता।बल्कि यहां माता रानी को प्रसन्न करने के लिए सुहाग की जगह जानवरों की भेंट की जाती है। ये सारी बातें हर किसी को सोचने में मजबूर कर देती है कि ऐसा क्यों। तो आज हम आपको बताएंगे माता रानी के इस रहस्यमयी भवन के बारें में कुछ दिलचस्प बातें। तो आईए जानते हैं

बता दें माता के इस द्वार को निरई व निराई माता के नाम से भी जाना जाता है। ये मंदिर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला से 12 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। ये श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। निरई माता को लगभग 200 सालों से पूजा जा रहा है। माता रानी के इस एक दरबार में बहुत सारी अनोखी बातें छिपी हैं। इस मंदिर की सबसे अनोखी बात ये है कि इस परिसर के कपाट सुबह 4 से 9 बजे तक सिर्फ 5 घंटे के लिए ही खोले जाते हैं। इस दौरान यहां भक्तों की भीड़ लग जाती है। लोग कतारों में लगकर मां के दर्शन करतें है। लेकिन इसकी अजीब सी परंपरा के मुताबिक मंदिर में महिलाओं का जाना और पूजा-पाठ करना वर्जित है।सिर्फ ये ही नहीं बल्कि महिलाओं को यहां के प्रसाद को खाने की इजाजत तक भी नहीं है। माना जाता है कि प्रसाद खाने से कुछ अनहोनी होने का डर रहता है। इसलिए केवल पुरुष ही यहां की पूजा-पाठ की रीतियों को निभाते हैं। 

मां निरई के इस पावन दरवार में सिंदूर, सुहाग, श्रृंगार, कुमकुम, गुलाल और धुप नहीं चढ़ाया जाता है। बल्कि नारियल, अगरबत्ती, से माता को मनाया जाता है। इसके साथ ही यहां बकरों की बलि दी जाती है,। लोक मान्यता के अनुसार ऐसा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। कई सालो से चली आ रही प्रथा के अनुसार मनोकामना पूरी होने के बाद मां को बकरे की बलि उपहार के रूप दी जाती है। इस मंदिर की एक और हैरान करने वाली बात ये है कि यहां चैत्र माह के नवरात्रों में 9 दिन ज्योत स्वयं प्रज्वलित होती है।.और माता रानी की ये पवित्र जोत बिना तेल और घी के स्वयं जलती है। ये नज़ारा देखने लोग दुर-दूर से यहां आते हैं और हैरान रह जाते हैं। यहां तक कि बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी इस रहस्य का पता आज तक नहीं लगा पाएं। 

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