Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Dec, 2025 11:36 AM

Lord Dattatreya Temple in Khargone district, Madhya Pradesh: एक प्रचलित कथा के अनुसार, ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया परम पतिव्रता थीं। उनके सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती ने अपने-अपने पतियों यानी भगवान विष्णु, महादेव और...
Lord Dattatreya Temple in Khargone district, Madhya Pradesh: एक प्रचलित कथा के अनुसार, ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया परम पतिव्रता थीं। उनके सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती ने अपने-अपने पतियों यानी भगवान विष्णु, महादेव और ब्रह्माजी को भेजा। तीनों देवता देवी अनुसूइया के पास गए और कहा कि आपको हमें निर्वस्त्र होकर भिक्षा देनी होगी। तब देवी अनुसूइया ने अपने सतित्व के बल से तीनों देवताओं को 6 मास के शिशु बना दिया और उन्हें स्तनपान करवाया। जब ये बात त्रिदेवियों को पता चली तो वे देवी अनुसूइया के पास आईं और अपने-अपने पतियों को उनके मूल स्वरूप में लाने के लिए प्रार्थना करने लगीं। तब देवी अनुसूइया ने त्रिदेवों को उनके पूर्व रूप में कर दिया। प्रसन्न होकर तीनों देवताओं ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्ररूप में जन्म लेंगे। तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।
Unique temple of Lord Dattatreya भगवान दत्तात्रेय का अनोखा मंदिर
मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में ऐसा मंदिर है, जो अपनी परम्पराओं के लिए देशभर में अनोखा माना जाता है। नर्मदा किनारे बसे जलकोटी गांव में स्थित ‘दत्त धाम’ में भगवान दत्तात्रेय शिव जी के साथ विराजते हैं। उनको बह्मा, विष्णु और महेश, तीनों का अवतार माना जाता है। मंदिर में छह भुजाओं वाली एकमुखी दत्त प्रतिमा के सामने एक विशाल शिवलिंग है। भक्त बताते हैं कि यहां दत्तात्रेय को ‘शिवदत्त’ के नाम से पूजा जाता है।

शिवलिंग तक पहुंचने के लिए करीब 600 मीटर लंबी गुफा से होकर गुजरना पड़ता है। हालांकि, सुरक्षा की दृष्टि से अब यह गुफा बंद है। शिवलिंग के दर्शन ऊपर से ही करने पड़ते हैं। मंदिर की खास बात है कि यहां कोई पंडित या पुजारी नहीं है। कुछ सेवादार आते हैं, जो पूरे 8 दिन तक यहां रहकर भगवान की पूजा, मंदिर की सफाई और भंडारे जैसे सारे काम करते हैं। सेवादारों की सूची इतनी लंबी है कि दोबारा नंबर पूरे साल बाद आता है। बताते हैं कि 2008 में विश्व चैतन्य सद्गुरु नारायण महाराज ने इस धाम को बनवाया था। उन्होंने देश में भगवान दत्तात्रेय के चार धाम बनाने का संकल्प लिया था।

जलकोटी में पहला धाम बनाने के बाद बाकी तीन धाम कन्याकुमारी, कोलकाता और उत्तराखंड में बनाए गए, लेकिन सेवा और श्रद्धा की मिसाल के रूप में जलकोटी का शिवदत्त धाम सबसे अलग है। हर गुरुवार व सोमवार रात्रि को भगवान की चरण पादुका को पालकी में रख कर पूरे परिसर में घुमाया जाता है और फिर कीर्तन होते हैं।
