धार्मिक ग्रथों में वर्णित इन पात्रों से मिलती है जीवन की नई सीख

Edited By Lata,Updated: 15 Dec, 2019 02:33 PM

niti shastra

हमारे हिंदू धर्म में ऐसे बहुत से ग्रंथ शामिल है, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा,

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हमारे हिंदू धर्म में ऐसे बहुत से ग्रंथ शामिल है, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा, लेकिन रामायण व महाभारत जैसे ग्रंथों के बारे में हर कोई जानता ही है। बात करें अगर उन ग्रंथों के बारे में तो व्यक्ति को जीवन में आने वाली हर परेशानी का हल उन में से मिल सकता है। वहीं आज हम आपको उन्हीं ग्रंथों में वर्णित कुछ ऐसे पात्रों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनसे आप अपने जीवन से जुड़ी कई सारी नई सीख ले सकते हैं। 
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भगवान परशुराम
शास्त्रों में परशुराम जी को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। इनका जन्म ब्राह्राण कुल में हुआ था लेकिन फिर भी इनके अंदर क्षत्रियों जैसा गुण थे। बता दें कि ये रामायण और महाभारत दोनों काल में उपस्थित थे। इन्होंने कर्ण और पितामह भीष्म को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी दी थी।

हनुमान जी 
धार्मिक शास्त्रों में हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है लेकिन वे भगवान राम के परम स्नेही बने। उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान राम की सेवा में ही लगा दिया था। महाभारत काल में भीम को हनुमान जी ऐसे समय में मिले जब महाभारत युद्ध की संभावना बनने लगी थी।
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मयासुर
रावण का ससुर और मंदोदरी का पिता राक्षस मयासुर था। वह रामायण और महाभारत के समय दोनों समय मौजूद था। महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण ने जब इसके प्राण लेने चाहे तब अर्जुन ने मयासुर को जीवनदान दिलाया था। इसी भवन में दुर्योधन मायाजाल में उलझकर पानी में गिर पड़ा था और द्रौपदी ने दुर्योधन का उपहास किया था।

जामवंत
रामायण काल के समय में राम जी ने इन्हें वचन दिया कि अगले अवतार में वह इस इच्छा को पूर्ण करेंगे। एक बार श्री कृष्ण एक गुफा में गए। इस गुफा में जामवंत रहता था। जामवंत के साथ 8 दिनों तक श्री कृष्ण युद्ध करते रहे। इसके बाद जामवंत को एहसास हुआ कि श्रीकृष्ण वास्तव में उनके प्रभु राम हैं। 
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महर्षि दुर्वासा
ये एक ऐसे महापुरुष हैं जिन्होंने रामायण भी देखा और महाभारत भी। एक कथा के अनुसार दुर्वासा के शाप के कारण लक्ष्मण जी को राम जी को दिया वचन भंग करना पड़ा था। महाभारत काल में इन्होंने कुंती को संतान प्राप्ति का मंत्र दिया था। इन्होंने दुर्योधन का आतिथ्य स्वीकार किया था।  

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