हनुमान जी नहीं बल्कि ये हैं श्री राम कथा के सबसे बड़े आचार्य

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Nov, 2019 09:10 AM

not hanuman ji but he is the greatest teacher of shri ram katha

श्री राम अयोध्या में नित्य अनोखी लीलाएं करते थे और अपने भक्तों को विशेष सुख प्रदान करते थे। काकभुशुंडि भगवान श्री राम के बाल स्वरूप के अनन्य भक्त थे तथा अयोध्या में जब-जब श्री राम का अवतार होता था, तब-तब महाराज दशरथ के मणिमय आंगन में

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श्री राम अयोध्या में नित्य अनोखी लीलाएं करते थे और अपने भक्तों को विशेष सुख प्रदान करते थे। काकभुशुंडि भगवान श्री राम के बाल स्वरूप के अनन्य भक्त थे तथा अयोध्या में जब-जब श्री राम का अवतार होता था, तब-तब महाराज दशरथ के मणिमय आंगन में बाल रूप श्री राम के आस-पास विहार करते थे। श्री राम की मधुर बाल लीला के दर्शन के साथ वे श्री राम द्वारा गिराई गई जूठन को खाकर अपने को धन्य करते थे।

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काकभुशुंडि श्री राम कथा के सबसे बड़े आचार्य हैं। जब भगवान श्री राम को नागपाश में बंधा देख कर गरुड़ जी को संशय हो गया था, तब इन्होंने ही श्री राम का प्रभाव बताकर उन्हें मोहमुक्त किया था। काकभुशुंडि जी पूर्व जन्म में भगवान शिव के परम भक्त थे। एक दिन वह शिव मंदिर में बैठ कर जब शिव नाम का जप कर रहे थे तब उनके गुरु आए और उन्होंने अभिमानवश उठकर गुरु के चरणों में प्रणाम नहीं किया। उनके गुरु भगवान के भक्त और परम क्षमावान थे। उन्होंने उनकी अशिष्टता पर ध्यान नहीं दिया, परंतु भगवान शिव गुरु अपमान को सहन नहीं कर सके और कु्रद्ध होकर काकभुशुंडि को सर्प होने का शाप दे दिया। 

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गुरु की प्रार्थना पर प्रसन्न होकर शिव ने काकभुशुंडि को पूर्व जन्मों की बात याद होने के साथ श्री राम भक्ति का वरदान दिया। एक जन्म में काकभुशुंडि ने ब्राह्मण के यहां जन्म लिया और लोमश ऋषि से विवाद होने के कारण उन्हें कौए की योनि में जन्म लेना पड़ा। बाद में कृपा करके लोमश जी ने भगवान श्री राम के बाल रूप के ध्यान के साथ उन्हें इच्छा मृत्यु का भी वर दिया।

वहीं काकभुशुंडि भगवान की मधुर बाल लीला के दर्शन तथा प्रसाद के लोभ के कारण महाराज दशरथ के आंगन में श्री राम के आस-पास विचरण कर रहे हैं। श्री राम के हाथ में मालपुआ है। वह उसे काकभुशुंडि की ओर आगे बढ़ाते हैं। काकभुशुंडि श्री राम के हाथों का दिव्य प्रसाद पाने के लिए ज्यों ही अपनी चोंच उनके नजदीक करते हैं, त्यों ही श्री राम अपने मालपुआ वाले हाथ को पीछे खींच लेते हैं, ज्यों ही दूसरा हाथ काकभुशुंडि को पकडऩे के लिए आगे बढ़ाते हैं, त्यों ही काकभुशुंडि पीछे भाग जाते हैं।

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भगवान और भक्त की यह विचित्र लीला कुछ समय तक इसी प्रकार चलती रहती है। भगवान की लीलाएं बड़ी ही विलक्षण हुआ करती हैं, उन्हें देख कर भगवान शिव और ब्रह्मा तक मोहित हो जाते हैं। फिर साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है? आखिर काकभुशुंडि जैसे भक्त भी भगवान की दिव्यातिदिव्य लीला की विचित्रता से मोहित हो ही गए।

उन्होंने सोचा, ‘‘जिन भगवान को अनंत कोटि ब्रह्मांड-नायक समझ कर मैं उपासना करता हूं, आज वे भी मुझे पकड़ने में असमर्थ हो गए।’’

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इस प्रकार का संशय जैसे ही काकभुशुंडि के मन में आया, वैसे ही श्री राम ने काकभुशुंडि को पकडऩे के लिए अपने हाथ को आगे बढ़ा दिया। काकभुशुंडि भी अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर उड़ चले। ब्रह्मांड के सात आवरणों को भेदकर जहां तक तीनों लोकों में उनके अंदर उडऩे की शक्ति थी, वह उड़ते गए और भगवान का हाथ पकडऩे के लिए उनके पीछे बढ़ता ही गया। जब काकभुशुंडि पूरी तरह थक गए और उनके अंदर उडऩे की थोड़ी भी शक्ति शेष न रही, तब भगवान ने उन्हें पकड़ लिया।

भगवान के उदर में काकभुशुंडि ने अनेकों ब्रह्मांडों का दर्शन किया। करोड़ों सूर्य, चंद्रमा, शिव, ब्रह्मा आदि उन्हें भगवान के उदर में दिखाई दिए। यहां तक कि जिसको उन्होंने न कभी देखा था न सुना था, ऐसी अनेक विचित्रताएं काकभुशुंडि ने भगवान के उदर में देखीं। उसके बाद भगवान ने उन्हें उगल दिया। फिर वही दृश्य सामने था, शिशुब्रह्म हाथ में मालपुआ लिए मुस्करा रहा था। इस तरह काकभुशुंडि का सारा भ्रम समाप्त हो गया।  


 

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