गुरु पूर्णिमा: जीवन में ज्ञान और कृतज्ञता का अद्भुत संदेश : गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

Edited By Updated: 10 Jul, 2025 02:18 PM

guru purnima a wonderful message of wisdom and gratitude in life

एक बार की बात है। एक संत एक गाँव में से होकर जा रहे थे। एक घर में एक माँ अपने बेटे से चिल्लाते हुए कह रही थी, "राम! तुम कब तक सोते रहोगे? उठो!" महिला के शब्दों ने संत को एक बार चौंका दिया। उनका मन जो अतीत और भविष्य के बारे में सोचने में लीन था, जाग...

धर्म: एक बार की बात है। एक संत एक गाँव में से होकर जा रहे थे। एक घर में एक माँ अपने बेटे से चिल्लाते हुए कह रही थी, "राम! तुम कब तक सोते रहोगे? उठो!" महिला के शब्दों ने संत को एक बार चौंका दिया। उनका मन जो अतीत और भविष्य के बारे में सोचने में लीन था, जाग गया। उसी क्षण उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया। प्रकृति आपको मन में चल रही शिकायतों और रोने-धोने से जागने के भरपूर संकेत देती है। गुरु पूर्णिमा जीवन के ज्ञान को जगाने का एक ऐसा ही अवसर है। जब आप जीवन का सम्मान करते हैं और जब आप में कृतज्ञता होती है, तो शिकायत बंद हो जाती है।

गुरु तत्त्व का सम्मान
जरा इस चमत्कार को देखिए - आपके शरीर में अरबों कोशिकाएँ लगातार पैदा हो रही हैं और विलीन हो रही हैं, प्रत्येक की अपनी लय है। आपने अपने शरीर के भीतर एक पूरा शहर बसा हुआ है, जैसे एक छत्ते में हजारों मधुमक्खियाँ एक रानी मधुमक्खी के चारों ओर इकट्ठा होती हैं। यदि रानी गायब हो जाती है, तो छत्ता ढह जाता है।

इसी तरह, आपके केंद्र में आत्मा है - स्व, दिव्य या गुरु तत्त्व। ये तीनों एक ही हैं - जीवन रूपी छत्ते के भीतर रानी मधुमक्खी की तरह हमें एक रखते हैं। गुरु तत्त्व गरिमामय है, फिर भी एक बच्चे की तरह विनम्र है। गुरु का सम्मान करना जीवन का सम्मान करना है। यही गुरु पूर्णिमा का सार है। शिक्षक आपको जानकारी देते हैं। गुरु आपके भीतर की जीवन शक्ति को जगाता है। गुरु आपको केवल ज्ञान से नहीं भरता अपितु  वह आपको इसका अनुभव कराता है। इसमें ज्ञान और जीवन का पूर्ण एकीकरण है। 


आपके जीवन में ज्ञान ही आपका गुरु है। जीवन ने आपको पहले ही बहुत कुछ सिखाया है कि आप कहाँ गलत किया और आपने क्या सही किया। आपको समय-समय पर इस ज्ञान पर प्रकाश डालना चाहिए। यदि आप इस ज्ञान के बारे में जागरूकता के बिना अपना जीवन जीते हैं, तो आप गुरु तत्व का सम्मान नहीं कर रहे हैं।  गुरु पूर्णिमा साधक के लिए एक नया वर्ष है। यह वार्षिक रिपोर्ट कार्ड देखने का समय है। आप जीवन में कितने आगे बढ़े हैं, और आप कितने अधिक स्थिर हैं। हमें बार-बार ज्ञान की ओर लौटने की आवश्यकता है; बुद्धि को ज्ञान में डुबाना होगा। यही सच्चा सत्संग है। सत्संग सत्य की संगति है, ज्ञानियों की संगति है। आप अपने भीतर के सत्य से हाथ मिलाते हैं, और यही सत्संग है।

अपने उपहारों का सम्मान करें
दूसरी बात जो आपको इस गुरु पूर्णिमा पर करनी चाहिए, वह है, आपको जो उपहार दिया गया है उसका उपयोग करना। यदि आप अच्छा बोलते हैं या आपकी बुद्धि अच्छी है, तो इसका उपयोग दूसरों के लाभ के लिए करें। आपको बहुत से आशीर्वाद दिए गए हैं। उनका बुद्धिमानी से उपयोग करें, और आपको और अधिक दिया जाएगा। देने वाला आपको अथक रूप से बहुत कुछ दे रहा है और आपसे किसी प्रकार की स्वीकृति या सम्मान भी नहीं चाहता है।

शब्दों से मौन की ओर बढ़ें
समझ के तीन स्तर हैं-एक शब्दों का स्तर है; फिर भावनाएँ आती हैं जहाँ आप शब्दों पर नहीं टिकते बल्कि शब्दों के पीछे के अर्थ या भावना को देखते हैं; और फिर तीसरा स्तर वह है जहाँ आप भावना से भी परे हो जाते हैं क्योंकि भावनाएँ और अर्थ बदल जाते हैं। तीसरा मौन के स्तर पर है। मौन के माध्यम से संदेश दिया जाता है। जैसे-जैसे आप मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, आप सोचने वाले मन से कृतज्ञता की भावना की ओर बढ़ते हैं और कृतज्ञता आपको आनंदमय मौन की ओर ले जाती है।

जानें कि गुरु साक्षी हैं
गुरु को केवल एक शरीर या व्यक्तित्व समझने की भूल मत कीजिए। गुरु को रूप से परे देखिए। निस्संदेह, गुरु सुख और सांत्वना देते हैं, लेकिन गुरु सभी प्रकार की बुद्धि, मन और विचारों के साक्षी भी हैं। अच्छा, बुरा, सही गलत में से वे किसी में भी शामिल नहीं हैं। सुखद अनुभवों ने आपको विकसित किया है, और इसी तरह अप्रिय अनुभवों ने भी। जीवन के सुखद अनुभवों ने आपको ऊँचाई दी और दुखद अनुभवों ने आपको गहराई और बुद्धिमत्ता दी। गुरु तत्त्व इन सबका साक्षी है - भावनाओं के परे होते हुए भी सभी गुणों को समेटे हुए। जीवन में कोई पलायन नहीं है। ऐसा मत सोचिए कि ज्ञान जीवन से पलायन है। ज्ञान का अर्थ है जीवन में बने रहना, हर चीज का साक्षी होना और जीवन में बने रहना। आपको बस इतना करना है कि यह दृढ़ विश्वास रखें कि एक बार जब आप रास्ते पर चल पड़ें, तो जान लें कि आपके लिए केवल सबसे अच्छा ही होगा।

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