Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Sep, 2023 08:18 AM
पंडित जवाहर लाल नेहरू पुस्तकों से बेहद लगाव रखते थे। वह पुस्तकें पढ़ते ही नहीं, उन्हें संभालकर बड़े प्यार से रखते थे। बेतरतीब रखी पुस्तकें देखकर वह नाराज हो जाते थे। एक
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Inspirational Story: पंडित जवाहर लाल नेहरू पुस्तकों से बेहद लगाव रखते थे। वह पुस्तकें पढ़ते ही नहीं, उन्हें संभालकर बड़े प्यार से रखते थे। बेतरतीब रखी पुस्तकें देखकर वह नाराज हो जाते थे। एक बार वह अपने किसी दोस्त के यहां ठहरे हुए थे। जब किसी कार्यवश कुछ घंटों के लिए उनके मित्र घर से बाहर गए तो कुछ पढ़ने के लिए नेहरू जी ने पुस्तकों की अलमारी खोली। अलमारी में किताबें इधर-उधर फेंकी हुई-सी पड़ी थीं।
यह देखकर पंडित जी को बड़ा दुख हुआ। एक पुस्तक अलमारी के कोने में धूल से सनी पड़ी थी। नेहरू जी ने उस पुस्तक को उठाया, साफ किया और अपने पास रख लिया। इसके बाद उन्होंने एक तरफ से शुरू करके पूरी अलमारी साफ की तथा बेतरतीब ढंग से रखी पुस्तकों को झाड़-पोंछकर, साफ करके यथासंभव ठीक ढंग से रख दिया।
जब मेजबान वापस आए तो उन्होंने पंडित जी का चेहरा देखकर ही समझ लिया कि दाल में कुछ काला है।
नेहरू जी ने उन्हें डांटते हुए कहा, “तुम्हें सम्मान करना नहीं आता, तो मुझे अपने यहां बुलाते ही क्यों हो ? तुमने मेरा अपमान किया है। अब मैं तुम्हारे यहां कभी नहीं आऊंगा।”
यह सुनते मेजबान सन्न हो गए।
जब पंडित जी का क्रोध शांत हुआ तो वह बोले, “क्या तुम नहीं जानते कि पुस्तक में लेखक की आत्मा निवास करती है ? पुस्तक का अपमान लेखक का अपमान है। उम्मीद है तुम मेरा मतलब समझ गए होगे।”
मेजबान ने पंडित जी से क्षमा मांगी और भविष्य में पुस्तकों की कद्र करने का वायदा किया।