Edited By Jyoti,Updated: 14 Sep, 2020 04:25 PM
यूं तो हर मास में आने वाले प्रदोष व्रत का सनातन धर्म में अधिक महत्व है। मगर कई बार ग्रह-नक्षत्र अपने प्रभाव से इन्हें अधित खास बना देते हैं।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
यूं तो हर मास में आने वाले प्रदोष व्रत का सनातन धर्म में अधिक महत्व है। मगर कई बार ग्रह-नक्षत्र अपने प्रभाव से इन्हें अधित खास बना देते हैं। जी हां, इस बार पड़ रहे हैं प्रदोष को लेकर ज्योतिषियों का यही कहना है। जी हां, बताया जा रहा है कि इस बार यानि 15 सितंबर, मंगलवार को पड़ रहे भौम प्रदोष व्रत के दिन विशेष संयोग बन रहा है, जो दो तिथियों का है। इसके अलावा इस दिन शिव योग बन रहा है। जिस दौरान शिव जी की आराधना बहुत फलदायी मानी जा रही है।
ज्योतिषी बताते हैं कि दरअसल प्रदोष व्रत कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है और अभी कृष्ण पक्ष चल रहा है। इस पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि पड़ती है यानि मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि दोनों एक साथ पड़ रही है। शास्त्रों में किए वर्णन के अनुसार दोनों ही तिथियो में भोलेनाथ शिव शंकर को प्रिय हैं। जिस कारण धार्मिक दृष्टि से यह संयोग भी बहुत ही शुभ माना जा रहा है। तो चलिए जानते हैं प्रदोष व्रत की व्रत विधि, साथ ही साथ जानेंगे इसका धार्मिक महत्व
धार्मिक महत्व
जैसे साल के प्रत्येक मास में दो एकादशी तिथियां होती हैं उसी तरह दो प्रत्येक माह में दो त्रयोदशी तिथियां भी होती हैं। जिसे मान्यताओं के अनुसार प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म में इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की पूजा का विधान है।
ऐसी कथाएं प्रचलित हैं कि भगवान शिव प्रदोष काल में कैलाश पर्वत पर प्रसन्नचित मन से नृत्य करते हैं। जिस कारण इस तिथि के दिन इनके विशेष पूजन-अर्चन का महत्व है।
व्रत विधि
स्नान आदि जैसे समस्त कार्य से निवृत्त होकर सबसे पहले भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
ध्यान रहे इस दिन भगवान शंकर की पूजा स्वच्छ वस्त्र धारण करके ही करें, संभव हो नए वस्त्र भी धारण कर सकते हैं।
इसके बाद भगवान शिव का0 गंगा जल से अभिषेक करें, था पूजन आरंभ करें।
इस दौरान शिव जी को पुष्प अक्षत, बेल पत्र, भांग, धतूरा, सफेद चंदन, गाय का दूध, धूप आदि चढ़ाएं।
पूजन में शिव जी मंत्रों का जप ज़रूर करें।
ॐ त्र्यंम्बकम् यजामहे, सुगन्धिपुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।'
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।।
ॐ नमः शिवाय
ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ऊं।
ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:', चंद्र मूल मंत्र 'ॐ चं चंद्रमसे नम:'।
इस दौरान शिव चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं।
अंत में शिव आरती करके अपनी पूजा को समाप्त करें तथा अपनी इच्छानुसार किसी भोग लगाएं।
प्रदोष व्रत पूजा समय
बताया जाता सूर्योदय और सूर्यास्त का समय) का पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है। हालांकि ऐसा भी कहा जाता है कि प्रदोष व्रत में शाम की पूजा का सबसे अधिक फलदायी होती है।